#जीवन काल भविष्यवाणी
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Sanatan Dharm ke Paras Guru Ji dvaara Aayujit Janmaashtami Mahotsav
संसार को गीता का उपदेश देने वाले कृष्ण के जन्म का महोत्सव
महंत पारस जी के अनुसार पुरातन सनातन धर्म में कई धार्मिक त्योहारों को सूचीबद्ध किया गया है,उन प्रमुख धार्मिक त्योहारों में से एक है जन्माष्टमी, जिसे कृष्ण अष्टमी और गोकुलाष्टमी के नाम से भी जानते हैं। यह हिन्दुओं के सबसे प्रतिष्ठित त्योहारों में एक है, जो विष्णु के आंठवे अवतार भगवान कृष्ण के जन्म का उत्सव मानते है। यह उत्सव जीवन में आनंद, भक्ति, सांस्कृतिक अभिव्यक्ति और जीवंतता का प्रतीक है।
यह कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है जो आमतौर पर अगस्त में आता है।
ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व
भगवान् श्री कृष्ण हिन्दू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक माने जाते हैं। हिन्दू वैष्णों धर्म में जन्माष्टमी का विशेष महत्त्व है। महंत पारस जी के अनुसार कृष्ण रास लीला की परंपरा जैसे कृष्ण के जन्म के समय मध्यरात्रि में जागरण करना, भक्ति गायन, नृत्य नाटक ,उपवास रखना जन्माष्टमी उत्सव के भाग हैं। कृष्ण देवकी और वासुदेव के आठवें पुत्र हैं। इनका जन्म मथुरा में भाद्रपद माह के आंठवे दिन की आधी रात को हुआ था। कृष्ण का जन्म अराजकता के समय हुआ था जब उ��के मामा कंस द्वारा उनके जीवन के लिए संकट था। यह समय ऐसा था जब उनके मामा के द्वारा उत्पीड़न बड़े पैमाने पर था,और सब ओर बुराई फैली हुई थी
महंत पारस जी ने उल्लेख किया है की हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार श्री कृष्ण का जन्म मथुरा के काल कोठरी में आधी रात को हुआ था। कथा के अनुसार मथुरा के अत्याचारी साशक कृष्ण के मामा कंस के लिए एक भविष्यवाणी हुई थी की उसकी बहन देवकी का आठवां पुत्र उसकी मृत्यु का कारण बनेगा। इसलिए उसने अपनी बहन देवकी और जीजा वासुदेव को काल कोठरी में बंद कर दिया और उनके हर पुत्र की हत्या कर दी लेकिन उसके आठवें पुत्र श्री कृष्ण को नहीं मार सका क्युकी जैसे ही वो मारने के आगे बढ़ा वैसे ही शिशु से योगमाया प्रकट हुई और कहा की उसको मारने वाला जन्म ले चुका है और उसे किसी सुरक्षित स्थान पर पंहुचा दिया गया है जो आगे चलकर उसका वध करेगा। मथुरा के बंदीगृह में जन्म के तुरंत उपरान्त, उनके पिता वसुदेव आनकदुन्दुभि कृष्ण को यमुना पार ले जाते हैं, जिससे बाल श्रीकृष्ण को गोकुल में नन्द और यशोदा को दिया जा सके। इस खबर से मथुरावासियों के भीतर ख़ुशी की लहर दौड़ गयी और उसी दिन से जन्माष्टमी को बेहद उत्साह के साथ मनाया जाने लगा।
श्री कृष्ण के प्रारंभिक जीवन के बारे में दर्शाते है, उनके चंचल कारनामों और दैवीय चमत्कारों, भगवद् गीता सहित विभिन्न ग्रंथों में वर्णित हैं। सनातन धर्म के रक्षक के रूप में श्री कृष्ण की भूमिका और भक्ति, कर्तव्य और प्रेम पर उनकी अभिव्यक्तियाँ और चरित्र हिन्दू दर्शन का मूल हैं।
उत्सव अनुष्ठान और प्रथाएं
हिन्दू समुदायों की विविध सांस्कृतिक प्रथाओं को दर्शाते हुए, जन्माष्टमी समारोह भारत और दुनिया भर में व्यापक रूप से भिन्न होते हैं। हालांकि, सामान्य विषय और अनुष्ठान इन समारोहों को एकजुट करते हैं।
उपवास और प्रार्थना
महंत पारस जी के अनुयायी इस दिन व्रत रखते हैं, जो आमतौर पर सूर्योदय से शुरू होता है और अगले दिन आधी रात के उत्सव के बाद समाप्त होता है। यह व्रत भक्ति और तपस्या का प्रतीक है, जो अनुयायियों को अपनी आध्यात्मिक प्रथाओं पर ��्यान केंद्रित करने की अनुमति देता है। व्रत के दौरान, भक्त प्रार्थना, जप और कृष्ण के जीवन से सम्बंधित ग्रंथों को पढ़ने में, भजन कीर्तन करने में संलग्न होते हैं।
आधी रात का जश्न
जन्माष्टमी का मुख्य आकर्षण आधी रात का उत्सव है, जो कृष्ण के जन्म के सही समय को दर्शाता है। मंदिरों और घरों को फूलों, रौशनी और रंगीन सजावट से सजाया जाता है। उनकी प्रार्थनाएं और भजन गायें जाते हैं,और कृष्ण की छवियों और मूर्तियों को स्न्नान कराया जाता है, सुन्दर सुन्दर कपडे पहनाएं जाते हैं और एक सुन्दर से सजाये गए पालने में रखा जाता है।
भक्त भक्ति गीत गाने, नृत्य करने और कृष्ण के बचपन के कारनामों की पुनरावृत्ति में भाग लेने के लिए इक्कठा होते हैं।
दही हांडी
जन्माष्टमी के सबसे जीवंत और लोकप्रिय पहलुओं में से एक दही हांडी परंपरा है, जो विशेष रूप से महाराष्ट्र और भारत के अन्य क्षेत्रों में मनाई जाती है। इस परंपरा में दही, मक्खन और अन्य वस्तुओं से भरी हुई एक मिटटी की हांडी को जमीन से ऊपर लटकाया जाता है। युवा टीम जिन्हे गोविंदा के नाम से जाना जाता है, हांडी तक पहुंचने और उसे तोड़ने के लिए मानव पिरामिड बनाते हैं। यह कृत्य कृष्ण के मक्खन के प्रति प्रेम और उनके शरारती स्वाभाव का प्रतीक है, जो उनकी चंचल भावना और एक नेता और रक्षक के रूप में उनकी भूमिका को दर्शाता है।
कृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन महंत पारस जी के द्वारा दही हांडी का समारोह आयोजन कराई जाती है, लोग दही हांडी तोड़ते हैं जो त्यौहार का एक भाग है। दही हांडी का शाब्दिक अर्थ है दही से भरा मिट्टी का पात्र। दही हांडी के अनुसार श्री कृष्ण अपने सखाओं सहित दही ओर मक्खन जैसे दूध के उत्पादों को ढूंढ कर और चुराकर बाँट देते थे। इसलिए लोग अपने घरों में माखन और दूध की हांडी बालकों की पहुंच से बाहर छिपा देते थे और कृष्ण अपने सखाओं के साथ ऊँचे लटकती हांडियों को तोड़ने के लिए सूच्याकार स्तम्भ बनाते थे। भगवान् कृष्ण की यह लीला भारत भर में हिन्दू मंदिरों के हस्तशिल्पों में, साथ साथ साहित्य में और नृत्य नाटक में प्रदर्शित की जाती है जो बालकों के आनंद और भोलेपन का प्रतीक है।
कृष्ण लीला प्रदर्शन
कृष्ण के जीवन के विभिन्न नाट्य रूपांतरण, जिन्हे कृष्ण लीला के नाम से जाना जाता है, जन्माष्टमी के दौरान प्रदर्शित किये जाते हैं। इन प्रदर्शनों में उनके बचपन के चमत्कारों , राक्षसों के साथ उनकी लड़ाई और महाभारत में उनकी भूमिका का पुनर्मूल्यांकन शामिल है। इन नाटकों का मंचन अक्सर सामुदायिक स्थानों और मंदिरों में किया जाता है, जो बड़ी संख्या में दर्शकों को आकर्षित करते हैं, मनोरंजन और आध्यात्मिक संवर्धन दोनों प्रदान करते हैं।
क्षेत्रीय विविधताएं
हिन्दू संस्कृति की विविधता को प्रदर्शित करते हुए, जन्माष्टमी को विशिष्ट क्षेत्रीय स्वादों के साथ मनाया जाता है। हर क्षेत्र और जगह का अपना महत्व है, विविधताएं है। हर क्षेत्र में कृष्ण के अलग अलग नाम हैं, विभिन्न क्षेत्रों में पूजा व्रत की अलग अलग विधियां हैं। लोग इस दिन पवित्रता बनाये रखने के लिए विभिन्न धार्मिक कृत्यों का पालन करते हैं। जिनमे विशेषरूप से रात्रि जागरण, पूजा अर्चना, और भजन कीर्तन शामिल हैं।
इन सभी विभिन्न परम्पराओं और अनोखे तरीकों से जन्माष्टमी मानाने का उद्देश्य भगवान श्री की उपस्थिति और उनकी बाल लीलाओं की याद ताज़ा करना होता है। जन्माष्टमी को त्यौहार न सिर्फ धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक एकता और विविधता का भी प्रतीक है।
मथुरा और वृन्दावन
ब्रज क्षेत्र में कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा और उनका बचपन का घर वृन्दावन, जन्माष्टमी समारोह के केंद्र हैं। मथुरा वृन्दावन में जन्माष्टमी की शोभा कुछ अलग ही देखने को मिलती है उत्सव में भाग लेने के लिए भारत और दुनिया के कोनों कोनों से तीर्थयात्री इन शहरों में आते हैं। मथुरा में कृष्ण जन्माष्टमी समारोह विशेष रूप से भव्य होते हैं जिसमे जुलुस, भक्ति गायन और विस्तृत अनुष्ठान होते हैं। वृन्दावन अपनी जीवंत उत्सवों के लिए प्रसिद्ध है, जिसमे कृष्ण की अपने भक्तों के साथ चंचल बातचीत की पुनरावृत्ति भी शामिल है।
पंजाब/हरयाणा
हरियाणा के (शाहाबाद मारकंडा) में महंत श्री पारस जी द्वारा डेरा नसीब दा में कृष्ण जन्माष्टमी बड़े पैमाने पर मनाई जाती है | पंजाब में जन्माष्टमी उत्साह और उमंग के साथ मनाई जाती है। यह त्यौहार भक्ति पूर्ण गायन, नृत्य और भजनों के गायन द्वारा चिन्हित है। गुरूद्वारे भी उत्सव में भाग लेते हैं, जो क्षेत्र में विभिन्न धार्मिक परम्पराओं के सामंजस्य पूर्ण सह अस्तित्व को उजागर करते हैं। जन्माष्टमी पर विशेष रूप से खिचड़ी का प्रसाद बनाया जाता है। इस दिन मंदिरों में खिचड़ी का वितरण किया जाता है , इसे बड़े श्रद्धा भाव से तैयार किया जाता है और सभी भक्तो के बिच प्रसाद रूप वितरित किया जाता है|
गुजरात / राजस्थान
गुजरात में, जन्माष्टमी को धुलेटी के नाम से जाना जाता है। उत्सव में विशेष प्रार्थनाएं, पारम्परिक नृत्य और उत्सव के भोजन की तैयारी शामिल है। यह क्षेत्र अपनी रंग बिरंगे जुलूसों और विस्तृत सजावट के लिए भी जाना जाता है, जो त्यौहार की ख़ुशी की भावना को दर्शाता है।
आध्यात्मिक और सांस्कृतिक प्रभाव
जन्माष्टमी का गहरा आध्यात्मिक महत्व है, जो दैवीय शक्ति और धार्मिकता की जीत का प्रतिनिधित्व करता है। भगवद गीता में वर्णित कृष्ण की शिक्षाएँ कर्तव्य, भक्ति और आत्मा की शाश्वत प्रकृति के महत्व पर जोर देती हैं। ये शिक्षाएँ लाखों अनुयायियों को प्रेरित और मार्गदर्शन करती रहती हैं।
सांस्कृतिक रूप से, जन्माष्टमी जीवन, कला और परंपरा के एक जीवंत उत्सव के रूप में कार्य करती है। यह त्यौहार समुदायों को एक साथ लाता है, एकता और साझा खुशी की भावना को बढ़ावा देता है। विभिन्न अनुष्ठान और प्रदर्शन न केवल क��ष्ण की दिव्य उपस्थिति का जश्न मनाते हैं ��ल्कि सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित और बढ़ावा भी देते हैं।
आधुनिक अनुकूलन और वैश्विक उत्सव
हाल के वर्षों में, दुनिया के विभिन्न हिस्सों में होने वाले उत्सवों के साथ, जन्माष्टमी ने भौगोलिक सीमाओं को पार कर लिया है। संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में हिंदू समुदाय भक्ति और उत्साह के साथ जन्माष्टमी मनाते हैं। इन देशों में मंदिर और सांस्कृतिक संगठन भजन सत्र, स��ंस्कृतिक प्रदर्शन और कृष्ण के जीवन और शिक्षाओं के बारे में शैक्षिक कार्यक्रमों सहित कार्यक्रमों की मेजबानी करते हैं।
जन्माष्टमी की वैश्विक पहुंच हिंदू परंपराओं के प्रति बढ़ती सराहना और कृष्ण की शिक्षाओं की सार्वभौमिक अपील को दर्शाती है। लाइव-स्ट्रीम किए गए कार्यक्रमों, सोशल मीडिया अभियानों और दुनिया भर के भक्तों को जोड़ने वाले ऑनलाइन मंचों के साथ आधुनिक तकनीक ने भी त्योहार के प्रभाव को बढ़ाने में भूमिका निभाई है।
1. धार्मिक महत्व: जन्माष्टमी कृष्ण के जन्म का प्रतीक है, जो पुरे संसार मे एक दिव्य नायक और धार्मिकता के प्रतीक के रूप में पूजनीय हैं। उनकी शिक्षा और जीवन भगवद गीता सहित विभिन्न हिंदू दर्शन और ग्रंथों का केंद्र हैं, जो आध्यात्मिक मार्गदर्शन और नैतिक शिक्षा प्रदान करता है।
2. नैतिक और नीतिपरक पाठ: कृष्ण के जीवन को सदाचारी और संतुलित जीवन जीने के मार्गदर्शक के रूप में देखा जाता है। उनके कार्य और सनातन धर्म शिक्षा (कर्तव्य/धार्मिकता), कर्म (कार्य और उसके परिणाम), और भक्ति की अवधारणाओं को संबोधित करते हैं। जन्माष्टमी का उत्सव इन सिद्धांतों की याद दिलाता है।
3. आध्यात्मिक नवीनीकरण: भक्तों के लिए, जन्माष्टमी आध्यात्मिक नवीनीकरण और भक्ति का एक अवसर है। बहुत से लोग कृष्ण का सम्मान करने और उनका आशीर्वाद पाने के लिए उपवास करते हैं, मंदिर सेवाओं में भाग लेते हैं, और प्रार्थना और ध्यान में संलग्न होते हैं।
4. बुराई पर अच्छाई का प्रतीक: माना जाता है कि कृष्ण का जन्म दुनिया को बुराई से छुटकारा दिलाने और सनातन धर्म की बहाली के लिए हुआ था। जन्माष्टमी का उत्सव बुराई पर अच्छाई की जीत और धार्मिकता को बनाए रखने के लिए चल रहे संघर्ष का प्रतीक है।
कृष्ण का चरित्र चित्रण
श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं , जो तीनो लोक के तीन गुणों सतगुण रजोगुण और तमोगुण में से सतगुण के स्वामी हैं। श्री कृष्ण को जन्म से सभी सिद्धियां उयस्थित थी। कालांतर में उन्हें युगपुरुष कहा गया। उन्होंने ही महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सारथि और सम्पूर्ण संसार को गीता के ज्ञान दिया था, इस उपदेश के लिए कृष्ण को जगतगुरु का सम्मान दिया जाता है। संसार में कृष्ण के किर��ार को शब्दों में बयां नहीं कर सकते वो एक निष्काम कर्मयोगी, आदर्श दार्शनिक , स्थितप्रज्ञ एवं दैवी सम्पदाओं से सुसज्जित महान पुरुष थे।
निष्कर्ष
जन्माष्टमी सिर्फ एक त्योहार ही नहीं त्यौहार से कहीं अधिक है; यह दिव्य प्रेम, धार्मिकता और सांस्कृतिक विरासत का उत्सव है। अपने जीवंत अनुष्ठानों, आनंदमय उत्सवों और गहरे आध्यात्मिक महत्व के माध्यम से, जन्माष्टमी सभी पृष्ठभूमि के लोगों को भगवान कृष्ण के प्रति भक्ति और श्रद्धा की साझा अभिव्यक्ति में एक साथ लाती है। जैसे ही हम इस शुभ अवसर का जश्न मनाते हैं, हमें कृष्ण की कालजयी शिक्षा और प्रेम, करुणा और धार्मिकता के स्थायी मूल्यों की याद आती है जो मानवता को प्रेरित करते रहते हैं। कुल मिलाकर, जन्माष्टमी केवल कृष्ण के जन्म का उत्सव नहीं है, बल्कि उनकी शिक्षा और एक सार्थक और नैतिक जीवन जीने में उनकी प्रासंगिकता पर विचार करने का एक अवसर भी है।
भगवान कृष्ण की दिव्य कृपा हम सभी पर बनी रहे और जन्माष्टमी की भावना हमारे दिलों को खुशी और भक्ति से भर दे।
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart20 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart21
सन् 2013 में कलयुग वर्तमान में कितना बीत चुका है?
हिन्दू धर्म में आदि शंकराचार्य जी का विशेष स्थान है। दूसरे शब्दों में कहें तो हिन्दू धर्म के सरंक्षक तथा संजीवन दाता भी आदि शंकराचार्य जी हैं। उनके पश्चात् जो प्रचार उनके शिष्यों ने किया, उसके परिणामस्वरूप हिन्दु देवताओं की पूजा की क्रान्ति-सी आई है। उनके ईष्ट देव श्री शंकर भगवान हैं। उनकी पूज्य देवी पार्वती जी हैं। इसके साथ श्री विष्णु जी तथा अन्य देवताओं के वे पुजारी हैं। विशेषकर "पंच देव पूजा" का विधान है :- 1. श्री ब्रह्मा जी 2. श्री विष्णु जी 3. श्री शंकर जी 4. श्री परासर ऋषि जी 5. श्री कृष्ण द्वैपायन उर्फ श्री वेद व्यास जी पूज्य हैं।
पुस्तक "हिमालय तीर्थ" (लेखक : जे.पी. नम्बूरी उप मुख्य कार्य अधिकारी श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति, प्रकाशक : रनज चक्रवर्ती 76A/1, बामाचरण राय रोड, कलकता, मुद्रक गिरि प्रिन्ट सर्विस कलकता) में शिव रहस्य नामक पुस्तक के श्लोक का हवाला देकर भविष्यवाणी की थी जो आदि शंकराचार्य जी के जन्म से पूर्व की है। कहा है कि आदि शंकराचार्य जी का जन्म कलयुग के तीन हजार वर्ष बीत जाने के पश्चात् होगा। अब गणित की रीति से जाँच करके देखते हैं, वर्तमान में यानि 2013 में
कलयुग कितना बीत चुका है?
जन्म प्रमाण :-
पुस्तक का नाम = ज्योतिर्मय ज्योतिर्मठ
लेखक = शंकराचार्य श्री स्वरूपानंद जी महाराज, संपादक एवं संकलनकर्ता विष्णुदत्त शर्मा, अध्यक्ष आध्यात्मिक उत्थान मंडल (दिल्ली), मुद्रक = फाईन प्रिंट एंड पैक्स, प्रकाशक : अखिल भारतीय आध्यात्मिक उत्थान मंडल 1/3234, गली नं. 2 राम नगर विस्तार, मण्डौली रोड, शाहदरा दिल्ली 110032। इस पुस्तक के पृष्ठ नं. 11 पर लिखा है: आद���य गुरू शंकराचार्य संक्षिप्त जीवन परिचय। गुरू परम्परागत मठों के अनुसार आदि श्री शंकराचार्य जी का जन्म ईश पूर्व 508 वर्ष है, वे 32 वर्ष जीवित रहे। उनका जीवन काल ईशा पूर्व 508/476 वर्ष है। इनका जन्म केरल प्रांत में पूर्णा नदी के तट पर कालड़ी ग्राम में धर्म निष्ट नम्बूदरी शैव ब्राह्मण श्री शिव गुरू व धर्म परायण सुभद्रा के घर हुआ था।
[नोट :- जो 508/476 लिखा है, इसका अर्थ है कि आदि शंकराचार्य जी का जन्म ईशा जी के जन्म से 508 वर्ष पूर्व हुआ तथा उनकी मृत्यु 32 वर्ष की आयु में ईशा जी के जन्म से 476 वर्ष पूर्व हुई।}
गणित की रीति से जानते हैं कि सन् 2013 में कलयुग कित80/456 हुआ है? :- आदि शंकराचार्य जी का जन्म ईशा जी के जन्म से 508 वर्ष पूर्व हुआ। ईशा जी के जन्म को हो गए = 2013 वर्ष।
शंकराचार्य जी को कितने वर्ष हो गए 2013 + 508 2521 वर्ष । ऊपर से हिसाब लगाएँ तो शंकराचार्य जी का जन्म हुआ वर्ष बीत जाने पर। कलयुग 3000
सन् वर्ष 2013 में कलयुग कितना बीत चुका है = 3000 + 2521 = 5521 वर्ष । अब देखते हैं कि 5505 वर्ष कलयुग कौन-से सन् में पूरा होता है = 5521 - 5505 = 16 वर्ष सन् 2013 से पहले।
2013-16 = 1997 ई. को कलयुग 5505 वर्ष पूरा हो जाता है। संवत् के हिसाब से स्वदेशी वर्ष फाल्गुन महीने यानि फरवरी-मार्च में पूरा हो जाता है। शंकराचार्य का अर्थ है शंकर जी तमगुण देवता का ज्ञान बताने वाला अध्यापक। जैसे कहते हैं Hindi Teacher यानि हिन्दी पढ़ाने वाला अध्यापक । इसी प्रकार शंकर आचार्य का अर्थ है शंकर यानि तमगुण शिव का ज्ञान बताने वाला गुरू। शंकराचार्य = शंकर गुरू, आदि शंकराचार्य का अर्थ है पहले वाला शंकर गुरू। शुरू वाला शंकराचार्य ।
यहाँ से देवी-देवताओं की पूजा प्रारंभ हो गई थी तथा मूर्ति पूजा व कर्मकांड में इजाफा हुआ और इस पूजा को करने वाले हिन्दू कहे जाने लगे। आदि शंकराचार्य जी ने भारत देश की चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की। चारों को उपरोक्त चार वाक्यों में से एक-एक दिया। प्रत्येक मठ की देवी तथा देवता भी भिन्न-भिन्न हैं। इनके वाक्य (मंत्र) भी भिन्न-भिन्न हैं, जैसे ऊपर लिखे हैं। वे इनकी पूजा करते तथा करवाते हैं। इसके साथ-साथ पित्तर पूजा, भूत पूजा, पिंड दान करना, तीर्थों पर जाना, चारों धामों की यात्रा करना, मूर्ति पूजा करना, व्रत रखना हिन्दुओं की विशेष पूजा है जो शास्त्रविधि त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण है। इसके करने से साधक को न तो सुख प्राप्त होता है, न सिद्धि प्राप्त होती है। जिससे कार्यों में न सफलता मिलती है तथा न गति होती है यानि उसका मोक्ष नहीं होता । विचारणीय विषय है कि इन तीन वस्तुओं के लिए ही तो भक्ति की जाती है। ये तीनों उपरोक्त शास्त्र विरुद्ध साधना से प्राप्त नहीं हुई, अपितु पित्तर पूजा से पित्तर बन गए। भूत पूजा से भूत बन गए। देवताओं की पूजा से कुछ समय उनके पास उनके लोक में चले गए। फिर पृथ्वी पर पशु-पक्षियों की य���नियों में कष्ट उठाया।
आदि शंकराचार्य परमात्मा की खोज में बचपन से ही लग गए थे। इनको पता चला कि एक संत गुफा में तपस्या करता है। कई-कई दिन बाहर नहीं की आयु में ईशा जी के जन्म से 476 वर्ष पूर्व हुई।}
गणित की रीति से जानते हैं कि सन् 2013 में कलयुग कितना व्यतीत हुआ है? :- आदि शंकराचार्य जी का जन्म ईशा जी के जन्म से 508 वर्ष पूर्व हुआ। ईशा जी के जन्म को हो गए = 2013 वर्ष।
शंकराचार्य जी को कितने वर्ष हो गए 2013 + 508 2521 वर्ष ।
ऊपर से हिसाब लगाएँ तो शंकराचार्य जी का जन्म हुआ वर्ष बीत जाने पर। कलयुग 3000
सन् वर्ष 2013 में कलयुग कितना बीत चुका है = 3000 + 2521 = 5521 वर्ष । अब देखते हैं कि 5505 वर्ष कलयुग कौन-से सन् में पूरा होता है = 5521 - 5505 = 16 वर्ष सन् 2013 से पहले।
2013-16 = 1997 ई. को कलयुग 5505 वर्ष पूरा हो जाता है। संवत् के हिसाब से स्वदेशी वर्ष फाल्गुन महीने यानि फरवरी-मार्च में पूरा हो जाता है। शंकराचार्य का अर्थ है शंकर जी तमगुण देवता का ज्ञान बताने वाला
अध्यापक। जैसे कहते हैं Hindi Teacher यानि हिन्दी पढ़ाने वाला अध्यापक । इसी प्रकार शंकर आचार्य का अर्थ है शंकर यानि तमगुण शिव का ज्ञान बताने वाला गुरू। शंकराचार्य = शंकर गुरू, आदि शंकराचार्य का अर्थ है पहले वाला शंकर गुरू। शुरू वाला शंकराचार्य । यहाँ से देवी-देवताओं की पूजा प्रारंभ हो गई थी तथा मूर्ति पूजा व कर्मकांड में इजाफा हुआ और इस पूजा को करने वाले हिन्दू कहे जाने लगे। आदि शंकराचार्य जी ने भारत देश की चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की। चारों को उपरोक्त चार वाक्यों में से एक-एक दिया। प्रत्येक मठ की देवी तथा देवता भी भिन्न-भिन्न हैं। इनके वाक्य (मंत्र) भी भिन्न-भिन्न हैं, जैसे ऊपर लिखे हैं। वे इनकी पूजा करते तथा करवाते हैं। इसके साथ-साथ पित्तर पूजा, भूत पूजा, पिंड दान करना, तीर्थों पर जाना, चारों धामों की यात्रा करना, मूर्ति पूजा करना, व्रत रखना हिन्दुओं की विशेष पूजा है जो शास्त्रविधि त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण है। इसके करने से साधक को न तो सुख प्राप्त होता है, न सिद्धि प्राप्त होती है। जिससे कार्यों में न सफलता मिलती है तथा न गति होती है यानि उसका मोक्ष नहीं होता । विचारणीय विषय है कि इन तीन वस्तुओं के लिए ही तो भक्ति की जाती है। ये तीनों उपरोक्त शास्त्र विरुद्ध साधना से प्राप्त नहीं हुई, अपितु पित्तर पूजा से पित्तर बन गए। भूत पूजा से भूत बन गए। देवताओं की पूजा से कुछ समय उनके पास उनके लोक में चले गए। फिर पृथ्वी पर पशु-पक्षियों की योनियों में कष्ट उठाया।
आदि शंकराचार्य परमात्मा की खोज में बचपन से ही लग गए थे। इनको पता चला कि एक संत गुफा में तपस्या करता है। कई-कई दिन बाहर नहीं निकलता, पहुँचा हुआ संत है। आदि शंकराचार्य जी उनसे मिले, गुरू बनाया। उस संत जी ने आदि शंकराचार्य जी को बताया कि जीव ही ब्रह्म है यानि जीव ही कर्ता है। शिष्य तो जिज्ञासु होता है। जो गुरू बताता है, उसी पर विश्वास करता है। आदि शंकराचार्य जी ने भी यही प्रचार करना प्रारंभ कर दिया। परमात्मा की भक्ति करनी चाहिए। मनुष्य जीवन भक्ति करके आत्म कल्याण करवाने के लिए मिलता है। जीव ही कर्ता है। यह प्रचार सनातन धर्म के व्यक्तियों में प्रारंभ किया। लोगों ने प्रश्न किए कि हे महात्मा जी! यदि जीव ही कर्ता (परमात्मा) है तो फिर भक्ति-साधना की क्या आवश्यक्ता है? आदि शंकराचार्य जी भी विचार करने लगे कि बात तो सही है। फिर वे कहने लगे कि शंकर भगवान तथा पार्वती माता की भक्ति करो। राम, कृष्ण का नाम जपो। विष्णु जी, ब्रह्मा जी की भक्ति करो। पाँच देवों की भक्ति करो। पाँच देवता बताए हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं: 1. श्री ब्रह्मा जी, 2. श्री विष्णु जी, 3. श्री शिव जी, 4. श्री परासर ऋषि जी, 5. श्री कृष्ण द्वैपायन यानि व्यास जी। इनकी भक्ति करो। इसे पंचदेव उपासना कहा है।
"आदि शंकराचार्य जी का बताया ज्ञान" : 1. यह जीवात्मा ही ब्रह्म है यानि परमात्मा है। पुस्तक - शांकर पंचकम् 1. लेखक : आदि शंकराचार्य, अनुवादकः- स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज, ज्योतिर्द्वारकेतिशांकरपीठद्वयाधीश्वराः, श्री शारदा पीठ प्रकाशनम् : श्री द्वारका। पृष्ठ नं. 8, श्लोक नं. 24 पर लिखा है कि वह ब्रह्म मैं ही हूँ यानि परमात्मा मैं (जीवात्मा) ही हूँ अर्थात् जीव ही ब्रह्म है।
पृष्ठ 62 पर श्लोक 41 में कहा है कि :- प्रश्न 12 : प्रारब्ध कर्म क्या है?
उत्तर (आदि शंकराचार्य जी का) इस शरीर को उत्पन्न कर इस लोक में इस प्रकार सुख-दुःख आदि भोग को देने वाले जो कर्म हैं, वे प्रारब्ध कर्म माने जाते हैं जो भोग से ही नष्ट होते हैं। प्रारब्ध कर्मों का नाश भोग से ही होता है, चाहे वो कर्म धर्ममय (पुण्य) हो या अधर्ममय यानि पाप कर्म हो, उनका फल भोगना पड़ेगा।
पृष्ठ नं. 62 पर ही श्लोक नं. 42 में कहा है कि "मैं ब्रह्म ही हूँ।" ऐसे निश्चयात्मक ज्ञान के द्वारा संचित (पूर्व जन्मों के शुभ अशुभ किए कर्म) नष्ट हो जाते हैं।
भावार्थ है कि भक्ति की आवश्यक्ता नहीं मानते। पाठको! इसे कहते हैं ऊवा बाई का ज्ञान।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart20 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart21
सन् 2013 में कलयुग वर्तमान में कितना बीत चुका है?
हिन्दू धर्म में आदि शंकराचार्य जी का विशेष स्थान है। दूसरे शब्दों में कहें तो हिन्दू धर्म के सरंक्षक तथा संजीवन दाता भी आदि शंकराचार्य जी हैं। उनके पश्चात् जो प्रचार उनके शिष्यों ने किया, उसके परिणामस्वरूप हिन्दु देवताओं की पूजा की क्रान्ति-सी आई है। उनके ईष्ट देव श्री शंकर भगवान हैं। उनकी पूज्य देवी पार्वती जी हैं। इसके साथ श्री विष्णु जी तथा अन्य देवताओं के वे पुजारी हैं। विशेषकर "पंच देव पूजा" का विधान है :- 1. श्री ब्रह्मा जी 2. श्री विष्णु जी 3. श्री शंकर जी 4. श्री परासर ऋषि जी 5. श्री कृष्ण द्वैपायन उर्फ श्री वेद व्यास जी पूज्य हैं।
पुस्तक "हिमालय तीर्थ" (लेखक : जे.पी. नम्बूरी उप मुख्य कार्य अधिकारी श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति, प्रकाशक : रनज चक्रवर्ती 76A/1, बामाचरण राय रोड, कलकता, मुद्रक गिरि प्रिन्ट सर्विस कलकता) में शिव रहस्य नामक पुस्तक के श्लोक का हवाला देकर भविष्यवाणी की थी जो आदि शंकराचार्य जी के जन्म से पूर्व की है। कहा है कि आदि शंकराचार्य जी का जन्म कलयुग के तीन हजार वर्ष बीत जाने के पश्चात् होगा। अब गणित की रीति से जाँच करके देखते हैं, वर्तमान में यानि 2013 में
कलयुग कितना बीत चुका है?
जन्म प्रमाण :-
पुस्तक का नाम = ज्योतिर्मय ज्योतिर्मठ
लेखक = शंकराचार्य श्री स्वरूपानंद जी महाराज, संपादक एवं संकलनकर्ता विष्णुदत्त शर्मा, अध्यक्ष आध्यात्मिक उत्थान मंडल (दिल्ली), मुद्रक = फाईन प्रिंट एंड पैक्स, प्रकाशक : अखिल भारतीय आध्यात्मिक उत्थान मंडल 1/3234, गली नं. 2 राम नगर विस्तार, मण्डौली रोड, शाहदरा दिल्ली 110032। इस पुस्तक के पृष्ठ नं. 11 पर लिखा है: आद्य गुरू शंकराचार्य संक्षिप्त जीवन परिचय। गुरू परम्परागत मठों के अनुसार आदि श्री शंकराचार्य जी का जन्म ईश पूर्व 508 वर्ष है, वे 32 वर्ष जीवित रहे। उनका जीवन काल ईशा पूर्व 508/476 वर्ष है। इनका जन्म केरल प्रांत में पूर्णा नदी के तट पर कालड़ी ग्राम में धर्म निष्ट नम्बूदरी शैव ब्राह्मण श्री शिव गुरू व धर्म परायण सुभद्रा के घर हुआ था।
[नोट :- जो 508/476 लिखा है, इसका अर्थ है कि आदि शंकराचार्य जी का जन्म ईशा जी के जन्म से 508 वर्ष पूर्व हुआ तथा उनकी मृत्यु 32 वर्ष की आयु में ईशा जी के जन्म से 476 वर्ष पूर्व हुई।}
गणित की रीति से जानते हैं कि सन् 2013 में कलयुग कित80/456 हुआ है? :- आदि शंकराचार्य जी का जन्म ईशा जी के जन्म से 508 वर्ष पूर्व हुआ। ईशा जी के जन्म को हो गए = 2013 वर्ष।
शंकराचार्य जी को कितने वर्ष हो गए 2013 + 508 2521 वर्ष । ऊपर से हिसाब लगाएँ तो शंकराचार्य जी का जन्म हुआ वर्ष बीत जाने पर। कलयुग 3000
सन् वर्ष 2013 में कलयुग कितना बीत चुका है = 3000 + 2521 = 5521 वर्ष । अब देखते हैं कि 5505 वर्ष कलयुग कौन-से सन् में पूरा होता है = 5521 - 5505 = 16 वर्ष सन् 2013 से पहले।
2013-16 = 1997 ई. को कलयुग 5505 वर्ष पूरा हो जाता है। संवत् के हिसाब से स्वदेशी वर्ष फाल्गुन महीने यानि फरवरी-मार्च में पूरा हो जाता है। शंकराचार्य का अर्थ है शंकर जी तमगुण देवता का ज्ञान बताने वाला अध्यापक। जैसे कहते हैं Hindi Teacher यानि हिन्दी पढ़ाने वाला अध्यापक । इसी प्रकार शंकर आचार्य का अर्थ है शंकर यानि तमगुण शिव का ज्ञान बताने वाला गुरू। शंकराचार्य = शंकर गुरू, आदि शंकराचार्य का अर्थ है पहले वाला शंकर गुरू। शुरू वाला शंकराचार्य ।
यहाँ से देवी-देवताओं की पूजा प्रारंभ हो गई थी तथा मूर्ति पूजा व कर्मकांड में इजाफा हुआ और इस पूजा को करने वाले हिन्दू कहे जाने लगे। आदि शंकराचार्य जी ने भारत देश की चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की। चारों को उपरोक्त चार वाक्यों में से एक-एक दिया। प्रत्येक मठ की देवी तथा देवता भी भिन्न-भिन्न हैं। इनके वाक्य (मंत्र) भी भिन्न-भिन्न हैं, जैसे ऊपर लिखे हैं। वे इनकी पूजा करते तथा करवाते हैं। इसके साथ-साथ पित्तर पूजा, भूत पूजा, पिंड दान करना, तीर्थों पर जाना, चारों धामों की यात्रा करना, मूर्ति पूजा करना, व्रत रखना हिन्दुओं की विशेष पूजा है जो शास्त्रविधि त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण है। इसके करने से साधक को न तो सुख प्राप्त होता है, न सिद्धि प्राप्त होती है। जिससे कार्यों में न सफलता मिलती है तथा न गति होती है यानि उसका मोक्ष नहीं होता । विचारणीय विषय है कि इन तीन वस्तुओं के लिए ही तो भक्ति की जाती है। ये तीनों उपरोक्त शास्त्र विरुद्ध साधना से प्राप्त नहीं हुई, अपितु पित्तर पूजा से पित्तर बन गए। भूत पूजा से भूत बन गए। देवताओं की पूजा से कुछ समय उनके पास उनके लोक में चले गए। फिर पृथ्वी पर पशु-पक्षियों की योनियों में कष्ट उठाया।
आदि शंकराचार्य परमात्मा की खोज में बचपन से ही लग गए थे। इनको पता चला कि एक संत गुफा में तपस्या करता है। कई-कई दिन बाहर नहीं की आयु में ईशा जी के जन्म से 476 वर्ष पूर्व हुई।}
गणित की रीति से जानते हैं कि सन् 2013 में कलयुग कितना व्यतीत हुआ है? :- आदि शंकराचार्य जी का जन्म ईशा जी के जन्म से 508 वर्ष पूर्व हुआ। ईशा जी के जन्म को हो गए = 2013 वर्ष।
शंकराचार्य जी को कितने वर्ष हो गए 2013 + 508 2521 वर्ष ।
ऊपर से हिसाब लगाएँ तो शंकराचार्य जी का जन्म हुआ वर्ष बीत जाने पर। कलयुग 3000
सन् वर्ष 2013 में कलयुग कितना बीत चुका है = 3000 + 2521 = 5521 वर्ष । अब देखते हैं कि 5505 वर्��� कलयुग कौन-से सन् में पूरा होता है = 5521 - 5505 = 16 वर्ष सन् 2013 से पहले।
2013-16 = 1997 ई. को कलयुग 5505 वर्ष पूरा हो जाता है। संवत् के हिसाब से स्वदेशी वर्ष फाल्गुन महीने यानि फरवरी-मार्च में पूरा हो जाता है। शंकराचार्य का अर्थ है शंकर जी तमगुण देवता का ज्ञान बताने वाला
अध्यापक। जैसे कहते हैं Hindi Teacher यानि हिन्दी पढ़ाने वाला अध्यापक । इसी प्रकार शंकर आचार्य का अर्थ है शंकर यानि तमगुण शिव का ज्ञान बताने वाला गुरू। शंकराचार्य = शंकर गुरू, आदि शंकराचार्य का अर्थ है पहले वाला शंकर गुरू। शुरू वाला शंकराचार्य । यहाँ से देवी-देवताओं की पूजा प्रारंभ हो गई थी तथा मूर्ति पूजा व कर्मकांड में इजाफा हुआ और इस पूजा को करने वाले हिन्दू कहे जाने लगे। आदि शंकराचार्य जी ने भारत देश की चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की। चारों को उपरोक्त चार वाक्यों में से एक-एक दिया। प्रत्येक मठ की देवी तथा देवता भी भिन्न-भिन्न हैं। इनके वाक्य (मंत्र) भी भिन्न-भिन्न हैं, जैसे ऊपर लिखे हैं। वे इनकी पूजा करते तथा करवाते हैं। इसके साथ-साथ पित्तर पूजा, भूत पूजा, पिंड दान करना, तीर्थों पर जाना, चारों धामों की यात्रा करना, मूर्ति पूजा करना, व्रत रखना हिन्दुओं की विशेष पूजा है जो शास्त्रविधि त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण है। इसके करने से साधक को न तो सुख प्राप्त होता है, न सिद्धि प्राप्त होती है। जिससे कार्यों में न सफलता मिलती है तथा न गति होती है यानि उसका मोक्ष नहीं होता । विचारणीय विषय है कि इन तीन वस्तुओं के लिए ही तो भक्ति की जाती है। ये तीनों उपरोक्त शास्त्र विरुद्ध साधना से प्राप्त नहीं हुई, अपितु पित्तर पूजा से पित्तर बन गए। भूत पूजा से भूत बन गए। देवताओं की पूजा से कुछ समय उनके पास उनके लोक में चले गए। फिर पृथ्वी पर पशु-पक्षियों की योनियों में कष्ट उठाया।
आदि शंकराचार्य परमात्मा की खोज में बचपन से ही लग गए थे। इनको पता चला कि एक संत गुफा में तपस्या करता है। कई-कई दिन बाहर नहीं निकलता, पहुँचा हुआ संत है। आदि शंकराचार्य जी उनसे मिले, गुरू बनाया। उस संत जी ने आदि शंकराचार्य जी को बताया कि जीव ही ब्रह्म है यानि जीव ही कर्ता है। शिष्य तो जिज्ञासु होता है। जो गुरू बताता है, उसी पर विश्वास करता है। आदि शंकराचार्य जी ने भी यही प्रचार करना प्रारंभ कर दिया। परमात्मा की भक्ति करनी चाहिए। मनुष्य जीवन भक्ति करके आत्म कल्याण करवाने के लिए मिलता है। जीव ही कर्ता है। यह प्रचार सनातन धर्म के व्यक्तियों में प्रारंभ किया। लोगों ने प्रश्न किए कि हे महात्मा जी! यदि जीव ही कर्ता (परमात्मा) है तो फिर भक्ति-साधना की क्या आवश्यक्ता है? आदि शंकराचार्य जी भी विचार करने लगे कि बात तो सही है। फिर वे कहने लगे कि शंकर भगवान तथा पार्वती माता की भक्ति करो। राम, कृष्ण का नाम जपो। विष्णु जी, ब्रह्मा जी की भक्ति करो। पाँच देवों की भक्ति करो। पाँच देवता बताए हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं: 1. श्री ब्रह्मा जी, 2. श्री विष्णु जी, 3. श्री शिव जी, 4. श्री परासर ऋषि जी, 5. श्री कृष्ण द्वैपायन यानि व्यास जी। इनकी भक्ति करो। इसे पंचदेव उपासना कहा है।
"आदि शंकराचार्य जी का बताया ज्ञान" : 1. यह जीवात्मा ही ब्रह्म है यानि परमात्मा है। पुस्तक - शांकर पंचकम् 1. लेखक : आदि शंकराचार्य, अनुवादकः- स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज, ज्योतिर्द्वारकेतिशांकरपीठद्वयाधीश्वराः, श्री शारदा पीठ प्रकाशनम् : श्री द्वारका। पृष्ठ नं. 8, श्लोक नं. 24 पर लिखा है कि वह ब्रह्म मैं ही हूँ यानि परमात्मा मैं (जीवात्मा) ही हूँ अर्थात् जीव ही ब्रह्म है।
पृष्ठ 62 पर श्लोक 41 में कहा है कि :- प्रश्न 12 : प्रारब्ध कर्म क्या है?
उत्तर (आदि शंकराचार्य जी का) इस शरीर को उत्पन्न कर इस लोक में इस प्रकार सुख-दुःख आदि भोग को देने वाले जो कर्म हैं, वे प्रारब्ध कर्म माने जाते हैं जो भोग से ही नष्ट होते हैं। प्रारब्ध कर्मों का नाश भोग से ही होता है, चाहे वो कर्म धर्ममय (पुण्य) हो या अधर्ममय यानि पाप कर्म हो, उनका फल भोगना पड़ेगा।
पृष्ठ नं. 62 पर ही श्लोक नं. 42 में कहा है कि "मैं ब्रह्म ही हूँ।" ऐसे निश्चयात्मक ज्ञान के द्वारा संचित (पूर्व जन्मों के शुभ अशुभ किए कर्म) नष्ट हो जाते हैं।
भावार्थ है कि भक्ति की आवश्यक्ता नहीं मानते। पाठको! इसे कहते हैं ऊवा बाई का ज्ञान।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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ईसा मसीह की मृत्यु
हजरत ईसा मसीह की मृत्यु 30 वर्ष की आयु में हुई जो पूर्व ही निर्धारित थी। स्वयं ईसा जी ने कहा कि मेरी मृत्यु निकट है।
(मत्ती 26ः24-55 पृष्ठ 42-44)
✝️ परमेश्वर अमर है, लेकिन ईसा मसीह जी की मृत्यु हुई
हजरत ईसा मसीह की मृत्यु पूर्व ही निर्धारित थी। स्वयं ईसा जी ने कहा कि मेरे बारह शिष्यों में से ही एक मुझे विरोधियों को पकड़वाएगा। एक ईसा मसीह का खास यहूंदा इकसरौती नामक शिष्य था, जिसने तीस रूपये के लालच में अपने गुरु जी को विरोधियों के हवाले कर दिया।
(मत्ती 26ः24-55 पृष्ठ 42-44)
✝️ पुण्यात्मा ईसा मसीह जी को केवल अपना पूर्व का निर्धारित जीवन काल प्राप्त हुआ जो उनके विषय में पहले ही पूर्व धर्म शास्त्रों में लिखा था।
‘‘मत्ती रचित समाचार‘‘ पृष्ठ 1 पर लिखा है कि याकुब का पुत्र युसूफ था। युसूफ ही मरियम का पति था।
मरियम को एक फरिश्ते से गर्भ रहा था। तब हजरत ईसा जी का जन्म हुआ समाज की दृष्टि में ईसा जी के पिता युसूफ थे। (मत्ती 1ः1-18)
✝️ ईसा मसीह की दर्दनाक मौत से साबित होता है कि वह परमात्मा नहीं थे। परमात्मा तो अविनाशी है।
तीस वर्ष की आयु में ईसा मसीह जी को शुक्रवार के दिन सलीब मौत (दीवार) के साथ एक आकार के लकड़ के ऊपर खड़ा करके हाथों व पैरों में मेख (मोटी कील) गाड़ दी।
जिस कारण अति पीड़ा से ईसा जी की मृत्यु हुई।
✝️*यीशु जी की जन्म-मृत्यु पहले ही निर्धारित थी*
हजरत यीशु का जन्म तथा मृत्यु व जो भी चमत्कार किए वे पहले ही ब्रह्म (यहोवा) के द्वारा निर्धारित थे ताकि उसके भेजे अवतार की महिमा बनी रहे और जब पूर्ण परमेश्वर का संदेशवाहक आये तो कोई उसका विश्वास न करें
प्रमाण के लिए देखें- पवित्र बाइबल यूहन्ना 9:1-34 में
✝️ईसा जी में फरिश्ते प्रवेश कर बोलते थे
एक स्थान पर ईसा जी ने कहा कि मैं याकूब से भी पहले था। संसार की दृष्टि से याकूब ईसा जी का दादा था। यदि ईसा जी की आत्मा होती तो यह नहीं कहती कि मैं याकूब (अपने दादा) से भी पहले था। सिद्ध होता है ईसा जी में कोई अन्य फरिश्ता बोल रहा था जो प्रेतवत प्रवेश कर जाता था।
✝️ईसा मसीह की बाईबल में एक सहायक (अवतार) भेजने की ��विष्यवाणी
यीशु ने बाईबल John 16:7 में एक सहायक (अवतार) भेजने की भविष्यवाणी की है कि - मैं तुमसे सच कहता हूं कि मेरा जाना तुम्हारे लिए अच्छा है। यदि मैं न जाऊं तो सहायक (अवतार) तुम्हारे पास न आयेगा। परंतु यदि मैं जाऊंगा तो उसे तुम्हारे पास भेज दूंगा।
वह सहायक/अवतार पूर्ण संत रामपाल जी महाराज जी हैं जो अपने दिव्य आध्यात्मिक ज्ञान से विश्व में शान्ति स्थापित करेंगे।
✝️पवित्र बाईबल में लिखा है कि जीसस के शरीर छोड़ने के बाद कोई अन्य मसीहा विश्व में आएगा जो विश्व में शांति स्थापित करेगा।
वह कोई और नहीं जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं।
✝️परमेश्वर कबीर जी की भक्ति से ही रक्षा होती है
ईसा जी को उनके शिष्य ने सिर्फ 30 रुपए के लिए उनके विरोधियों को सौंप दिया। विरोधियों ने T आकार की लकड़ी में कील गाड़कर क्रश कर दिया। हज़रत ईसा जी ने मरते समय कहा कि हे मेरे प्रभु! आपने मुझे क्यों त्याग दिया। इससे स्पष्ट है कि काल प्रभु अंतिम समय में अकेला छोड़ देता है। (पवित्र बाईबल मत्ती 27 तथा 28/20 पृष्ठ 45 से 48 में)
✝️भक्ति युक्त आत्माएं नबी बनकर आती हैं
बाईबल में यूहन्ना ग्रन्थ (अध्याय 16 श्लोक 4 से 15) में प्रमाण है काल भक्ति युक्त भक्तों को नबी बनाकर भेजता है और उन्हीं भक्तों की कमाई से चमत्कार करवाता रहता है। जब उनकी कमाई खत्म हो जाती है उनको मरने के लिए छोड़ देता है जैसे ईसा जी की मृत्यु हुई।
लेकिन परमेश्वर भक्ति दृढ़ रखने के लिए 3 दिन बाद ईसा जी के रूप में प्रकट हुए। ताकि जब भक्ति युग आए तो सब सतभक्ति करें और साधक पूर्ण मोक्ष को प्राप्त करें।
✝️ईसा जी का जीवन निर्धारित था
ईसा जी की मृत्यु 30 वर्ष की आयु में हुई जो पूर्व निर्धारित थी। ईसा जी ने कहा कि मेरी मृत्यु निकट है तथा तुम शिष्यों में से ही एक मुझे विरोधियों को पकड़वाएगा और वो मुझे मार देंगे। इससे सिद्ध है हज़रत ईसा जी ने कोई चमत्कार नहीं किया ये सब पहले से ही निर्धारित था। हज़रत ईसा जी किसी को सुखी भी नहीं कर सकते थे जिनको सुख हुआ था वो पहले से ही निर्धारित थे।
✝️ईसा जी परमेश्वर के पुत्र थे
ईसा जी ने स्वयं को परमेश्वर का पुत्र कहा, न कि स्वयं को परमेश्वर कहा। इससे सिद्ध हुआ कि परमेश्वर कोई और है। उसने जमीन और आसमान के बीच की कायनात 6 दिन में रची और सातवें दिन तख्त पर जा विराजा (प्रमाण- बाईबल उत्पत्ति ग्रंथ, पृष्ठ 1-3)
✝️हजरत ईसा जी में देव तथा पित्तर प्रवेश होकर बोलते थे
प्रमाण : बाईबल अध्याय 2 कुरिन्थियों 2ः12-17 पृष्ठ 259-260 में स्पष्ट लिखा है कि एक आत्मा नबी में प्रवेश करके बोल रही है।
✝️मांस खाने का आदेश परमेश्वर का नहीं है
प्रमाण:- कोरिंथियन 2:12, 17
एक आत्मा किसी में प्रवेश करके बोल रही है।
(17) हम उन लोगों में से नहीं है जो परमेश्वर के वचनों में मिलावट करते हैं।
इससे स्पष्ट है कि ईसा जी में अन्य फरिश्ते और अन्य आत्माएं भी बोलती हैं जो अपनी तरफ से मिलावट करके बोलती हैं।
बाईबल में मांस खाने का आदेश अन्य आत्माओं क��� है, प्रभु का नहीं।
✝️क्या यीशु परमेश्वर हैं?
ईसाई त्रिदेवों में, जो पिता, पुत्र व पवित्र आत्मा के बारे में बताते हैं कि यीशु परमेश्वर का पुत्र था।
मार्क 1:11- और आकाश से एक आवाज़ आयी: "तुम मेरे प्यारे पुत्र हो, तुमसे मैं बहुत प्रसन्न हूँ।"
सिद्ध हुआ कि यीशु परमेश्वर का पुत्र था।
✝️जीसस के शरीर में आत्माएँ प्रवेश करके भविष्यवाणियां करती थी।
जब जीसस को क्रॉस/सूली पर चढ़ाया गया तब सभी आत्माओं ने यीशु के शरीर को छोड़ दिया।
बाईबल 2 कोरिंथियन 2:12-17 पृष्ठ 259-260 में प्रमाण है कि आत्माएँ यीशु के शरीर में प्रवेश करके बोलती थीं।
✝️यीशु का जन्म-मरण व चमत्कार सब काल (यहोवा) के द्वारा निर्धारित था
पवित्र बाईबल यूहन्ना 9:1-34 ���ें है कि एक अंधे व्यक्ति को यीशु ने स्वस्थ कर दिया। यीशु बोले इसका कोई पाप नहीं था, यह इसलिए हुआ कि प्रभु की महिमा प्रकट करनी थी। यदि पाप होता तो यीशु उसकी आंखें ठीक नहीं कर सकते थे।
✝️ईसा जी की मृत्यु बाद परमेश्वर प्रकट हुए
ईसा जी को क्रश करने के बाद पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब, ईसा जी का रूप धारण करके अनेकों जगह प्रकट होकर शिष्यों को दिखाई देने लगे। यदि परमेश्वर नहीं आते तो ईसा जी के पूर्व चमत्कारों को देखते हुए ईसा जी का अंत देखकर कोई भी व्यक्ति भक्ति साधना नहीं करता, नास्तिक हो जाते।
(प्रमाण पवित्र बाईबल में यूहन्ना 16: 4-15)
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*🌷बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय🌷*
16/02/2024
*📣X + Koo सेवा📣*
🌼 *सतगुरु जी के बोध दिवस और निर्वाण दिवस के उपलक्ष्य में अब ट्विटर और कू पर भंडारे में आमंत्रित करते हुए ट्रेंडिंग सेवा करेंगे जी।*
*🎯अपने tag के साथ सेवा करेंगे।🎯*
*#विश्व_का_सबसे_बड़ा_भंडारा*
*1Day Left For Bodh Diwas*
*📷''' सेवा से सम्बंधित photo लिंक⤵️*
*Hindi*
https://www.satsaheb.org/hindi-bhandara-invitation-2024/
*English*
https://www.satsaheb.org/english-bhandara-invitation-2024/
*Odia*
https://www.satsaheb.org/odia-invitation-2024/
*Assamese*
https://www.satsaheb.org/assamese-bhandara-invitation-2024/
*Punjabi*
https://www.satsaheb.org/gujarati-bhandara-invitation-2024/
*Telugu*
https://www.satsaheb.org/telugu-bhandara-invitation-2024/
*Marathi*
https://www.satsaheb.org/marathi-bhandara-invitation-2024/
*Gujarati*
https://www.satsaheb.org/gujarati-bhandara-invitation-2024/
*Kannad*
https://www.satsaheb.org/kannad-bhandara-invitation-2024/
*🎯Sewa Points🎯* ⤵️
🎈 विश्व के सभी महान भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियों के अनुसार भारत का एक महापुरुष विश्व को मानवता के सूत्र में बांध देगा व हिंसा, दुराचार, कपट संसार से सदा के लिए मिटा देगा वह महापुरुष कोई और नहीं बल्कि जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज हैं जिनका 17 फरवरी को बोध दिवस है। इस उपलक्ष्य में 10 सतलोक आश्रमों में चार दिवसीय निःशुल्क विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है।
इस भंडारे में देसी घी से निर्मित भोजन, गरीबदास जी महाराज की अमर वाणी का चार दिवसीय खुला पाठ, दहेज मुक्त शादियाँ व रक्तदान शिविर का आयोजन भी किया जा रहा है। जिसमें आप सभी सादर आमंत्रित हैं।
🎈समस्त जीव आत्माओं के कल्याण हेतु धरती पर अवतरित महान परम संत रामपाल जी महाराज का 17 फरवरी को बोध दिवस है जो काल के बंधन से छुड़वाकर जीव को मोक्ष प्रदान कराते हैं। बोध दिवस के उपलक्ष्य में देशभर में उनके 10 आश्रमों में चार दिवसीय विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें पूरे विश्व को आमंत्रित किया गया है। साथ ही भंडारे में निःशुल्क ��ामदीक्षा, रक्तदान शिविर, सामूहिक दहेज मुक्त विवाह का भी आयोजन किया गया है।
🎈नास्त्रेदमस ने भविष्यवाणी की है कि ठहरो स्वर्ण युग आ रहा है। एक महापुरुष आध्यात्मिक ज्ञान से पूरे विश्व मे शांति लायेगा। जिसके नेतृत्व में भारत विश्व गुरु बनेगा। वह महापुरुष संत रामपाल जी महाराज जी हैं जिनके बोध दिवस के उपलक्ष्य में और कबीर परमेश्वर जी के निर्वाण दिवस के उपलक्ष्य में 17 -20 फरवरी को 10 सतलोक आश्रमों में चार दिवसीय निःशुल्क विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है। इस भंडारे में शुद्ध देशी घी से निर्मित भोजन, गरीबदास जी महाराज की अमर वाणी का खुला पाठ, दहेज मुक्त शादियाँ व रक्तदान शिविर का आयोजन भी किया जा रहा है। जिसमें आप सभी सादर आमंत्रित हैं।
🎈17 फरवरी को उस महान संत रामपाल जी महाराज जी का बोध दिवस है, जिन्होंने मानव कल्याण के लिए अपना सर्वस्व त्याग दिया। और देखते ही देखते पूरे विश्व में अपने तत्त्वज्ञान का परचम लहरा दिया।
17 -20 फरवरी को संत रामपाल जी महाराज जी के बोध दिवस के उपलक्ष्य में व कबीर परमेश्वर जी के निर्वाण दिवस के उपलक्ष्य में 10 सतलोक आश्रमों में विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें संपूर्ण विश्व को आमंत्रित किया गया है।
🎈नास्त्रेदमस के अनुसार ग्रेट शायरन यानी वह महान पुरुष जो कलयुग में सतयुग लाएगा वह संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं जिनका 17 फरवरी को बोध दिवस मनाया जा रहा है। बोध दिवस के उपलक्ष्य में व कबीर परमेश्वर जी के निर्वाण दिवस के उपलक्ष्य में 17-20 फरवरी को 10 सतलोक आश्रमों में विशाल शुद्ध देसी घी द्वारा निर्मित विशाल भंडारा चल रहा है। साथ ही निःशुल्क नाम दीक्षा भी दी जा रही है। इस अवसर पर पूरा विश्व आमंत्रित है।
🎈 समाज सुधारक संत रामपाल जी महाराज जी के बोध दिवस के उपलक्ष्य में व कबीर परमेश्वर जी के निर्वाण दिवस के उपलक्ष्य में 17-20 फरवरी को 10 सतलोक आश्रमों में संत गरीबदास जी महाराज की अमरवाणी का खुला पाठ, शुद्ध देशी घी से निर्मित विशाल भंडारा, रक्तदान शिविर, नशामुक्त कार्यक्रम, दहेजमुक्त विवाह जैसे अद्भुत समाज सेवी कार्यक्रम चल रहे हैं। इस महासमागम के अवसर पर आप सभी सादर आमंत्रित हैं।
🎈मनुष्य जीवन में महत्वपूर्ण दिन वह है जब सतगुरु मिल जाते हैं। उससे पहले का जीवन निरर्थक होता है। 17 फरवरी 1988 के दिन संत रामपाल जी महाराज जी ने नाम दीक्षा ली और कुछ वर्ष बाद अपने पूज्य गुरुदेव से नाम दीक्षा देने का आदेश पाकर करोड़ों लोगों का मार्गदर्शन किया। इसी दिन को बोध दिवस के रूप में मनाया जाता है। संत रामपाल जी महाराज जी के बोध दिवस के उपलक्ष्य में व कबीर परमेश्वर जी के निर्वाण दिवस के उपलक्ष्य में 17-20 फरवरी को 10 सतलोक आश्रमों में विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है जिसमें पूरा विश्व आमंत्रित है।
🎈17 फरवरी को संत रामपाल जी महाराज का बोध दिवस है। इसी दिन से विश्व कल्याण के लिए अवतरित इस पूर्ण संत ने दिन रात एक कर दिया और कुछ ही वर्षों में वह कर दिखाया जो दुनिया भर के भविष्यवक्ता कहते आये हैं। संत रामपाल जी महाराज जी के बोध दिवस के उपलक्ष्य में व कबीर परमेश्वर जी के निर्वाण दिवस के उपलक्ष्य में 17-20 फरवरी को 10 सतलोक आश्रमों में विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है जिसमें पूरा विश्व आमंत्रित है।
🎈 नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी के अनुसार ग्रेट शायरन हैं संत रामपाल जी महाराज। उन्हीं संत के बोध दिवस पर 17-20 फरवरी को 10 सतलोक आश्रमों में विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है जिसमें पूरा विश्व आमंत्रित है।
🎈कलयुग में सतयुग लाने वाले महापुरुष संत रामपाल जी महाराज जी के बोध दिवस पर 17-20 फरवरी को 10 सतलोक आश्रमों में विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है जिसमें पूरा विश्व आमंत्रित है।
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Satsang Ishwar TV | 23-09-2023 | Episode: 2153 | Sant Rampal Ji Maharaj ...
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आध्यात्मिक ज्ञान + धर्म ग्रंथो के अनुसार ज्ञान + शास्त्र अनुकूल ज्ञान + सत्य तत्व ज्ञान + परम पवित्र निर्मल ज्ञान + भक्ति दायक ज्ञान + मोक्षदायक ज्ञान ! जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज पूर्ण संत + पूर्ण सतगुरु + नाम दीक्षा देने के अधिकारी + भक्ति मुक्ति दाता + धरती पर अवतार + महान कल्याणकारी विचारधारा के महान परोपकारी संत है | शीघ्र से शीघ्र सत् गुरु शरण में आयें और नाम दीक्षा लेकर आजीवन मर्यादा में रहकर सत् भक्ति करें, क्योंकि पूर्ण ब्रह्म कबीर परमेश्वर जी ने हम सभी जीव आत्माओं को महान पुण्यों के आधार पर हमें ये मानव जीवन केवल सत् भक्ति करने के लिए और मोक्ष प्राप्ति के लिए ही दिया है | वेदों में प्रमाण है _कबीर साहेब भगवान है + हिंदू आदि सनातन धर्म महान है | पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर कबीर जी आदि पुरुष + आदि राम + आदि गणेश जी हैं, जो विघ्नहर्ता + संकट मोचन + कष्ट हरण + मंगल करण + पाप भंजन + समर्थ सुख सागर जैसी उपमाओं को धारण करते हैं | काल और माया तथा 84 लाख योनियों के चक्रव्यूह रूपी षड्यंत्र में से + बंधनों में से _छुड़ाने वाले _बंदी छोड़ भगवान कहलाते हैं | "अमर करूँ सतलोक पठाऊँ, तांते बंदी छोड़ कहांऊँ | कलयुग मध्य सतयुग लाऊँ तांते बंदी छोड़ कहांऊँ"| पूर्ण ब्रह्म कबीर पर्मेश्वर् जी किसी भी जीवात्मा की बुद्धि पवित्र निर्मल कर सकते हैं + परमेश्वर कबीर जी किसी का भी असाध्य रोग समाप्त कर सकते हैं | परमेश्वर कबीर जी अपने साधक की 100 वर्ष की आयु भी बढ़ा सकते हैं | जो जन मोक्ष के उद्देश्य से सतगुरु की शरण में जाते हैं और शास्त्र अनुकूल सत् भक्ति करते हैं, परमात्मा सदा उनके साथ रहते हैं | परमात्मा को अपनी सभी आत्मा प्यारी होती हैं क्योंकि वह समदर्शी पुरुष है परंतु शरण पड़े साधक पर विशेष अनुग्रह करते रहते हैं | और साधकों में भी जो मोक्ष के उद्देश्य से सत् भक्ति करते हैं, अपने ऐसे साधकों पर परमेश्वर कबीर जी का पूर्ण प्रेम और विशेष अनुग्रह बना रहता है | कबीर वाणी_ *मम संत जानिए मेरा ही स्वरूपम*
"सतगुरु पूर्ण ब्रह्म हैं, सतगुरु आप आलेख |
सतगुरु रमता राम हैं,या में मीन ना मेंख" ||
परमात्मा कबीर जी कहते हैं जो संसार के सुखों के उद्देश्य से सत् भक्ति करता है,वह तो केवल माया को ही चाहता है और काल के जाल में ही फंसा रहता है |
झूठे सुख को अपना सुख मानता है और कष्ट पर कष्ट झेलता रहता है | कबीर वाणी_ "एक साधे सब सधे सब साधे सब जाये |
माली सींचे पौध को फले फुले अघाये ||
"84 बंधन कटे, कीन्हि क्लप कबीर | भुवन चतुर्दश लोक में, टूटे सब जम जंजीर"||
"अनंत कोटि ब्रह्मांड में बंदी छोड़ कहाये | सो तो एक कबीर हैं, जननी जने ना माये"||
"सेवक होय के उतरे, इस पृथ्वी के माहिं | जीव उद्धारण जगतगुरु बार बार बलि जाहिं"||
सभी वेदों में + पुराणों में + शास्त्रों में और ग्रंथों में प्रमाण मिलते हैं + महापुरुषों की वाणीयों में प्रमाण मिलते हैं पूर्ण अक्षर पुरुष / पूर्ण ब्रह्म पुरुष_कबीर पर्मेश्वर् जी ही हैं, जो चाहे सो कर सकते हैं |
भविष्य वक्ताओं की भविष्यवाणी में प्रमाण मिलते हैं कि संत रामपाल जी महाराज जी ही जगत गुरु + विश्व गुरु + महान पूर्ण संत + महान पूर्ण सतगुरु + महापुरुष हैं, पूर्ण ब्रह्म कबीर अवतार पुरुष हैं, जो आत्माओं के कल्याण के लिए धरती पर अवतरित हुए हैं | 📕🙏
🙏सब्सक्राइब कीजिए यु टुयुब पर संत रामपाल जी महाराज और प्रतिदिन देखिए सत्संग के मंगल प्रवचन साधना 📺 चैनल पर 7:30 p.m. से 8:30 p.m. तक |
संत रामपाल जी महाराज के सत्संग_ अपनी पूर्ण रूप से धार्मिक जानकारी के लिए_अपना परम कर्तव्य समझकर अवश्य सुनते रहिए, क्योंकि अध्यात्म मार्ग पर नर्सरी से पी.एच.डी.की पढ़ाई एकमात्र संत रामपाल जी महाराज जी ही करा रहे हैं, जो 100% सत्य प्रमाण के साथ है 📕🙏
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🌈विश्व विजेता संत रामपालजी के विषय में भविष्यवाणी🌈
संत रामपाल जी महाराज सतलोक आश्रम, बरवाला, जिला हिसार, हरियाणा के संचालक हैं जो पवित्र शास्त्रों के अनुसार कबीर परमेश्वर का सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान कर रहे हैं। उनका जन्म 8 सितंबर 1951 को भारत के हरियाणा राज्य के सोनीपत जिले के धनाना नामक एक छोटे से गाँव में एक किसान परिवार में हुआ।
उनकी आध्यात्मिक यात्रा 17 फरवरी 1988 को कबीर पंथी गुरु स्वामी रामदेवानंद जी के शिष्य बनने के बाद शुरू हुई, स्वामी रामदेवानंद जी ने वर्ष 1994 में उन्हें अपना उत्तराधिकारी यह कहते हुए चुना था कि "इस पूरी दुनिया में आपके जैसा कोई दूसरा संत नहीं होगा"।
संत रामपाल जी महाराज को सत्य आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हुआ, तब से उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया है। उन्होंने सतभक्ति मार्ग को जन जन तक पहुंचाने के लिए अपनी सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया तथा 1994-1998 तक घर-घर जाकर आध्यात्मिक प्रवचन दिए। जल्द ही हजारों भक्तों ने शरण ग्रहण की और वर्ष 1999 में हरियाणा के रोहतक जिले के करोंथा में आश्रम की स्थापना की गई। वर्तमान में, वह पूरी तरह से दुनिया भर में भक्ति के सच्चे मार्ग का प्रचार-प्रसार करने के लिए समर्पित हैं जिसके फलस्वरूप आत्माओं को मोक्ष की प्राप्ति होगी।
धरती पर अवतरित संत रामपालजी महाराज के विषय में प्रसिद्ध भविष्यवक्ता जैसे की फ्लोरेंस, इंग्लैंड के केयरो, जीन डिक्सन, श्रीमान चार्ल्स क्लार्क और अमेरिका के श्री एंडरसन, हॉलैंड के श्री वेजिलेटिन, श्री जेरार्ड क्राइस, हंगरी के भविष्यवक्ता बोरिस्का, फ्रांस के डॉ. ज़ुल्वोरोन, प्रसिद्ध फ्रांसीसी भविष्यवक्ता नास्त्रेदमस, इज़राइल के प्रोफेसर हरारे, नॉर्वे के श्री आनंदाचार्य, ��यगुरुदेव पंथ के श्री तुलसीदास मथुरा वाले और कई अन्य भविष्यवक्ताओं ने भविष्यवाणी की है कि वह अवतार 'विश्व में एक नई सभ्यता' लाएगा जो सम्पूर्ण विश्व में फैल जाएगी, चारों ओर शांति और भाईचारा होगा और वह नई सभ्यता आध्यात्म पर आधारित होगी जो भारत के एक ग्रामीण परिवार में पैदा हुए एक महान आध्यात्मिक नेता के नेतृत्व में उत्पन्न होगी।
इन महान भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियों में यह भी उल्लेख है की उस महान आध्यात्मिक नेता के पास आम लोगों की बहुत बड़ी संख्या होगी जो भौतिकवाद को आध्यात्मवाद में बदल देंगे। उस महान आध्यात्मिक नेता के मार्गदर्शन में भारत धार्मिक, औद्योगिक और आर्थिक दृष्टि से दुनिया का नेतृत्व करेगा और पूरी दुनिया में भक्तों को उनके द्वारा बताई भक्ति विधि ही स्वीकार्य होगी। यह सभी भविष्यवाणियां संत रामपालजी महाराज पर खरी उतरती हैं, क्योंकि संत रामपालजी महाराज ही एकमात्र ऐसे संत हैं जिनके ज्ञान और सतभक्ति मंत्र इंसान की हजारों बुराइयों को दूर करते हैं जिससे वह एक शांतिपूर्ण, स्वस्थ और सुखी जीवन व्यतीत करता है।
पवित्र कबीर सागर अर्थात सूक्ष्मवेद जो कि सर्वशक्तिमान कबीर जी की अमृत वाणी में भी उल्लेख है कि 'जब कलयुग 5505 वर्ष बीत जाएगा तब उनका तेरहवा वंश 'सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करने के लिए आएगा और शास्त्र विरुद्ध भक्ति विधि व ज्ञान और झूठी धार्मिक प्रथाओं को मिटाकर शांति की स्थापना करेगा। वह साधकों को सच्चे मोक्ष मंत्र प्रदान करने के लिए अधिकृत होगा (प्रमाण भगवद गीता अध्याय 17 श्लोक 23)। सभी आत्माएं बुराई छोड़ देंगी और सदाचारी बन जाएंगी और भगवान कबीर के अवतार की महिमा करेंगी।'
यही तेरहवा पंथ वर्तमान में संत रामपालजी महाराज द्वारा चलाया जा रहा है। तेरहवा पंथ वास्तविक यथार्थ कबीर पंथ है जो सन् 1994 से प्रारम्भ हुआ है जो संत रामपालजी महाराज द्वारा संचालित है। यही वह समय है जब तत्वज्ञान को समझ कर घर घर में कबीर साहेब की भक्ति प्रारंभ होगी व् सभी मोक्ष के भागी होंगे।
वास्तविकता में विश्व विजेता संत रामपाल जी महाराज, भगवान कबीर साहेब के अवतार हैं और अज्ञानता को दूर करने और कसाई काल के जाल में फंसी हुई अपनी प्यारी आत्माओं को मुक्त करने के लिए व चारों ओर फैले अधर्म का विनाश करने के लिए अवतरित हुए हैं। आप सभी उनकी शरण ग्रहण करें और अपने मानव जन्म को श्रेष्ठ बनाकर मोक्ष प्राप्त करें, परमात्मा को प्राप्त करें।
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पवित्र पुस्तक "धरती पर अवतार"
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12 अप्रैल 2023 आज का शुभ मुहूर्त दिन चौघड़िया मुहूर्त समय और राशिफल
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*🚩🔱ॐगं गणपतये नमः🔱🚩*
🌹 *सुप्रभात जय श्री राधे राधे*🌹
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#वास्तु_ऐस्ट्रो_टेक_सर्विसेज_टिप्स
#हम_सबका_स्वाभिमान_है_मोदी
#योगी_जी_हैं_तो_मुमकिन_है
#देवी_अहिल्याबाई_होलकर_जी
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※══❖═══▩राधे राधे▩═══❖══※
विक्रम संवत : 2080
शालिवाहन शके : 1945
मास : वैशाख कृष्ण पक्ष
ऋतु : वसंत
अयन : उत्तरायण
तिथि : सप्तमी रात्रि 3:43 तक
नक्षत्र : मूल प्रात: 11:57 तक
योग : परिघ दोप 3:17 तक
करण : विष्टि भद्र सायं 4:43 तक
सूर्योदय : 6:10:42 सूर्यास्त : 6:44:38
दिनकाल : 12 घंटे 33 मिनट 55 सेकंड
रात्रिकाल : 11 घंटे 25 मिनट 11 सेकंड
चंद्रास्त : प्रात: 10:45 चंद्रोदय : रात्रि 1:02
आज की ग्रह स्थिति
सूर्य राशि : मीन में
चंद्र राशि : धनु में
मंगल : मिथुन में
बुध : मेष में
गुरु : मीन में अस्त
शुक्र : मेष में
शनि : कुंभ में
राहु : मेष में
केतु : तुला में शुभ समय दिन के लाभ : प्रात: 6.11 से 7:45
अमृत : प्रात: 7:45 से 9:19 शुभ : प्रात: 10:53 से दोप 12:28 लाभ : सायं 5:10 से 6:45 शुभ समय रात्रि के शुभ : रात्रि 8:10 से 9:36 त्याज्य समय राहु काल : दोप 12:28 से 2:02 यम घंट : प्रात: 7:45 से 9:19
आज विशेष : आज का शुभ रंग : हरा आज के पूज्य देव : मां सरस्वती आज का मंत्र : ऊं ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नम:
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राशिफल
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ज्योतिषशास्त्र में राशिफल के माध्यम से विभिन्न काल-खण्डों के बारे में भविष्यवाणी की जाती है। जहां दैनिक राशिफल रोजाना की घटनाओं को लेकर भविष्यकथन करता है,वहीं साप्ताहिक, मासिक एवं वार्षिक राशिफल में क्रमशः सप्ताह, महीने और साल की भविष्यकथन होते हैं। आज के राशिफल में आपके लिए नौकरी, व्यापार, ले��-देन, परिवार और मित्रों के साथ संबंध, सेहत और दिनभर में होने वाली शुभ-अशुभ घटनाओं का भविष्यफल होता है। इस राशिफल को पढ़कर आप अपनी दैनिक योजनाओं को सफल बनाने में कामयाब रहेंगे। जैसे दैनिक राशिफल ग्रह-नक्षत्र की चाल के आधार पर आपको यह बताएगा कि आज के दिन आपके सितारे आपके अनुकूल हैं या नहीं। आज आपको किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है या फिर किस तरह के अवसर आपको प्राप्त हो सकते हैं। दैनिक राशिफल को पढ़कर आप दोनों ही परिस्थिति (अवसर और चुनौतियों) के लिए तैयार हो सकते हैं।
मेष दैनिक राशिफल : आज का दिन आपके लिए कुछ नए लोगों से मेलजोल बढ़ाने में कामयाब रहेगा। आपको यदि कोई रोग चला रहा था, तो आपके कष्टों में वृद्धि हो सकती है। मामा पक्ष से आपको धन लाभ मिलता दिख रहा है। विद्यार्थी शिक्षा में अच्छा प्रदर्शन करेंगे और धार्मिक व मनोरंजन के कार्यक्रमों में भी आप बढ़ चढ़कर हिस्सा लेंगे। दीर्घकालीन योजनाओं को गति मिलने से आपका व्यवसाय चरम पर होगा और आपके कुछ नए शत्रु भी उत्पन्न हो सकते हैं।
वृषभ दैनिक राशिफल : आज का दिन आपके लिए स्वास्थ्य के मामले में कुछ कमजोर रहने वाला है। आपकी बड़प्पन दिखाने की आदत के कारण आपको समस्या हो सकती है और सरकारी नौकरी में कार्यरत लोग अपने प्रमोशन को लेकर थोड़ा परेशान रहेंगे, लेकिन बाद में उन्हें समझ आएगा कि यह उनकी तरक्की लेकर आया है। किसी समझौते पर आज बहुत ही सोच विचारकर दस्तखत करें। माता पिता के आशीर्वाद से आप किसी छोटे-मोटे व्यवसाय की शुरुआत कर सकते हैं।
मिथुन दैनिक राशिफल : आज का दिन दांपत्य जीवन जी रहे लोगों के लिए अच्छा रहने वाला है, क्योंकि वह आज अपने साथी के साथ भविष्य की कुछ योजनाओं को लेकर बातचीत करेंगे और आप परिवार में सदस्यों के साथ कुछ समय मौज मस्ती करने के लिए भी निकालेंगे और आप अपने लक्ष्य पर फोकस बनाए रखें। करीबियों का साथ व सहयोग आज आपको भरपूर मात्रा में मिलेगा और किसी महत्वपूर्ण जानकारी को आप किसी बाहरी व्यक्ति से साझा ना करें। नेतृत्व क्षमता भी आज आपकी बढ़ेगी। किसी संपत्ति संबंधित विवाद में आपको जीत मिल सकती है।
कर्क दैनिक राशिफल : आज का दिन आपके लिए मेहनत और लगन से काम करने के लिए रहेगा। नौकरी में कार्यरत लोग अधिकारियों की बात को पूरा ध्यान दें। कामकाज की तलाश कर रहे लोगों को आज कोई अच्छा अवसर मिल सकता है। सामाजिक क्षेत्रों में कार्यरत लोग अपने कामों से जाने जाएंगे, जिससे उनकी छवि और निखर कराएगी। आपको कार्यक्षेत्र में आज कम लाभ मिलने से आप थोड़ा परेशान रहेंगे।
सिंह दैनिक राशिफल : आज का दिन आपके लिए मौज मस्ती भरा रहने वाला है। आप अपने परिजनों के साथ कहीं घूमने फिरने जाने की प्लानिंग कर सकते हैं। परिवार में किसी सदस्य के विवाह प्रस्ताव पर मुहर लगने से माहौल खुशनुमा रहेगा और कला कौशल को बल मिलेगा, जो लोग विदेशों से व्यापार कर रहे हैं, उन्हें सावधानी बरतनी होगी, नहीं तो वह किसी डील को फाइनल कर सकते हैं। आप अपने व्यवहार में मधुरता बनाए रखें, नहीं तो आपके कुछ कामों में समस्या आ सकती है।
कन्या दैनिक राशिफल : आज का दिन आपके लिए मिश्रित रूप से फलदायक रहने वाला है। आपको किसी काम को लेकर अहंकार नहीं करना है। जल्दबाजी में आप कोई काम ना करें। आप अपनी शान शौकत की वस्तुओं पर अत्यधिक धन व्यय कर सकते हैं। बड़ों का सहयोग व समर्थन आपको भरपूर मात्रा में मिलेगा और जीवनसाथी से आपकी किसी बात को लेकर कहासुनी हो सकती है, जिससे वह आपसे नाराज रहेंगी। माता जी को आज कोई शारीरिक कष्ट होने से आज आपको समस्या होगी।
तुला दैनिक राशिफल : आज का दिन आपके लिए मिलाजुला रहने वाला है। आपके निर्णय लेने की क्षमता का आज आपको लाभ मिलेगा और सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे लोगों के प्रयास आज तेजी पकड़ेंगे। आपको परिवार में यदि किसी सदस्य के करियर को लेकर कोई फैसला लेना हो, तो उसमें महत्वपूर्ण वरिष्ठ सदस्यों से बातचीत अवश्य करें और आप अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाएंगे। आपको अच्छा लाभ मिलने से आप अपने खर्चों में भी वृद्धि कर सकते हैं, जो बाद में आपके लिए समस्या बन सकती हैं।
वृश्चिक दैनिक राशिफल : आज का दिन आपके लिए महत्वपूर्ण रहने वाला है। आप व्यापार में कामों को लेकर सावधान रहेंगे और आपको किसी अजनबी की बातों पर भरोसा करने से बचना होगा सामाजिक गतिविधियों में भी आपके पूरी रुचि रहेगी। कुछ नए संपर्कों से आपको पूरा लाभ मिलेगा और आपका किसी नई संपत्ति को खरीदने का सपना पूरा हो सकता है, लेकिन आप माता-पिता से आशीर्वाद अवश्य लेकर जाएं। यदि आपकी कोई प्रिय व मूल्यवान वस्तु खो गई थी, तो वह भी आज आपको मिल सकती है।
धनु दैनिक राशिफल : आज का दिन पारिवारिक जीवन जी रहे लोगों के लिए सुखमय रहने वाला है। भविष्य की योजनाओं को बनाने मे आपकी पूरी रुचि रहेगी और आपने यदि किसी वरिष्ठ सदस्य से कोई वादा या वचन किया था, तो उसे आप उसे समय रहते पूरा करेंगे। आपको कार्यक्षेत्र में कुछ नयी खोज करनी होगी, तभी आप अपनी आय में वृद्धि कर पाएंगे। सभी को साथ लेकर चलने की कोशिश आज आपकी कामयाब रहेगी। किसी मांगलिक कार्यक्रम के होने से आज व्यस्त रहेंगे।
मकर दैनिक राशिफल : आज का दिन आपके लिए सकारात्मक परिणाम लेकर आने वाला है। आप अपने खर्चों पर नियंत्रण बनाकर रखें, नहीं तो समस्या हो सकती है। आप अपनी अच्छी सोच का कार्य क्षेत्र में लाभ उठाएंगे। लेनदेन के मामले में आप सावधानी बरतें, नहीं तो आपका कोई नुकसान हो सकता है। लंबी दूरी की यात्रा पर आपको जाने का मौका मिलेगा। संतान की संगति की तरफ आप विशेष ध्यान दें, नहीं तो वह किसी गलत काम की ओर अग्रसर हो सकते हैं। ��िद्यार्थियों को अपनी परीक्षा में कठिन परिश्रम की आवश्यकता है, तभी वह सफलता हासिल कर सकेंगे।
कुंभ दैनिक राशिफल : आज का दिन राजनीतिक क्षेत्रों में कार्यरत लोगों के लिए अच्छा रहने वाला है, उन्हें आज किसी बड़े पद की प्राप्ति हो सकती है और किसी न्यायिक मामले में फैसला आपके पक्ष में होगा। यदि आप किसी बड़े निवेश की तैयारी कर रहे हैं, तो उसमें भी आपको अच्छा मुनाफा मिल सकता है। करियर में तेजी से उछाल आएगा, जिससे आपका मन प्रसन्न रहेगा। मित्रों के सहयोग से आपका कोई लंबे समय से रुका हुआ काम बन सकता है। आपको ससुराल पक्ष के किसी व्यक्ति से बहसबाजी में पड़ने से बचना होगा।
मीन दैनिक राशिफल : आज के दिन आपको शासन सत्ता का पूरा लाभ मिलता दिख रहा है और निवेश संबंधित मामलों में किसी से कोई सौदेबाजी ना करें, नहीं तो वह असफल रहेगी और आपको अपने कार्यों को गति देनी होगी, तभी वह पूरे हो सकेंगे। आपकी आज कुछ नए लोगों से मुलाकात होगी। आप अपनी आय और व्यय के लिए बजट बनाकर चलेंगे, तो आपके लिए बेहतर रहेगा। संतान को किसी नई नौकरी के प्राप्ति होने से माहौल खुशनुमा रहेगा। विद्यार्थियों को बौद्धिक व मानसिक बोझ से छुटकारा मिलेगा।
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नाडी आतिशबाज़ी !! ओम अगस्थाय नमः! 1000 साल पहले "श्री अगस्त्य महर्षि" ने आपकी भविष्य की भविष्यवाणी के बारे में लिखा था। उन्होंने लिखा था कि यह पूर्वनिर्धारित है कि आपका जन्म इस वर्ष, माह और तिथि, समय और इस नाम में इस माता-पिता के लिए और इस ग्रह स्थिति में और इस स्थान पर होगा ... जैसे एक ताड़ के पत्ते में एक कविता, जिसे देखकर हम आप सभी के बारे में भविष्यवाणी करते हैं, आपके परिवार, भविष्य के उतार-चढ़ाव, जैसे शिक्षा, करियर, विवाह, जीवन काल और बच्चे, आध्यात्मिकता, राजनीतिक और विदेशी यात्राएं और समाधान भी। हर साल इस उम्र से भविष्यवाणी अधिक विवरण में और सटीक रूप में आपके जीवन काल तक।
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🌈विश्व विजेता संत रामपालजी के विषय में भविष्यवाणी🌈
संत रामपाल जी महाराज सतलोक आश्रम, बरवाला, जिला हिसार, हरियाणा के संचालक हैं जो पवित्र शास्त्रों के अनुसार कबीर परमेश्वर का सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान कर रहे हैं। उनका जन्म 8 सितंबर 1951 को भारत के हरियाणा राज्य के सोनीपत जिले के धनाना नामक एक छोटे से गाँव में एक किसान परिवार में हुआ।
उनकी आध्यात्मिक यात्रा 17 फरवरी 1988 को कबीर पंथी गुरु स्वामी रामदेवानंद जी के शिष्य बनने के बाद शुरू हुई, स्वामी रामदेवानंद जी ने वर्ष 1994 में उन्हें अपना उत्तराधिकारी यह कहते हुए चुना था कि "इस पूरी दुनिया में आपके जैसा कोई दूसरा संत नहीं होगा"।
संत रामपाल जी महाराज को सत्य आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हुआ, तब से उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया है। उन्होंने सतभक्ति मार्ग को जन जन तक पहुंचाने के लिए अपनी सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया तथा 1994-1998 तक घर-घर जाकर आध्यात्मिक प्रवचन दिए। जल्द ही हजारों भक्तों ने शरण ग्रहण की और वर्ष 1999 में हरियाणा के रोहतक जिले के करोंथा में आश्रम की स्थापना की गई। वर्तमान में, वह पूरी तरह से दुनिया भर में भक्ति के सच्चे मार्ग का प्रचार-प्रसार करने के लिए समर्पित हैं जिसके फलस्वरूप आत्माओं को मोक्ष की प्राप्ति होगी।
धरती पर अवतरित संत रामपालजी महाराज के विषय में प्रसिद्ध भविष्यवक्ता जैसे की फ्लोरेंस, इंग्लैंड के केयरो, जीन डिक्सन, श्रीमान चार्ल्स क्लार्क और अमेरिका के श्री एंडरसन, हॉलैंड के श्री वेजिलेटिन, श्री जेरार्ड क्राइस, हंगरी के भविष्यवक्ता बोरिस्का, फ्रांस के डॉ. ज़ुल्वोरोन, प्रसिद्ध फ्रांसीसी भविष्यवक्ता नास्त्रेदमस, इज़राइल के प्रोफेसर हरारे, नॉर्वे के श्री आनंदाचार्य, जयगुरुदेव पंथ के श्री तुलसीदास मथुरा वाले और कई अन्य भविष्यवक्ताओं ने भविष्यवाणी की है कि वह अवतार 'विश्व में एक नई सभ्यता' लाएगा जो सम्पूर्ण विश्व में फैल जाएगी, चारों ओर शांति और भाईचारा होगा और वह नई सभ्यता आध्यात्म पर आधारित होगी जो भारत के एक ग्रामीण परिवार में पैदा हुए एक महान आध्यात्मिक नेता के नेतृत्व में उत्पन्न होगी।
इन महान भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियों में यह भी उल्लेख है की उस महान आध्यात्मिक नेता के पास आम लोगों की बहुत बड़ी संख्या होगी जो भौतिकवाद को आध्यात्मवाद में बदल देंगे। उस महान आध्यात्मिक नेता के मार्गदर्शन में भारत धार्मिक, औद्योगिक और आर्थिक दृष्टि से दुनिया का नेतृत्व करेगा और पूरी दुनिया में भक्तों को उनके द्वारा बताई भक्ति विधि ही स्वीकार्य होगी। यह सभी भविष्यवाणियां संत रामपालजी महाराज पर खरी उतरती हैं, क्योंकि संत रामपालजी महाराज ही एकमात्र ऐसे संत हैं जिनके ज्ञान और सतभक्ति मंत्र इंसान की हजारों बुराइयों को दूर करते हैं जिससे वह एक शांतिपूर्ण, स्वस्थ और सुखी जीवन व्यतीत करता है।
पवित्र कबीर सागर अर्थात सूक्ष्मवेद जो कि सर्वशक्तिमान कबीर जी की अमृत वाणी में भी उल्लेख है कि 'जब कलयुग 5505 वर्ष बीत जाएगा तब उनका तेर��वा वंश 'सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करने के लिए आएगा और शास्त्र विरुद्ध भक्ति विधि व ज्ञान और झूठी धार्मिक प्रथाओं को मिटाकर शांति की स्थापना करेगा। वह साधकों को सच्चे मोक्ष मंत्र प्रदान करने के लिए अधिकृत होगा (प्रमाण भगवद गीता अध्याय 17 श्लोक 23)। सभी आत्माएं बुराई छोड़ देंगी और सदाचारी बन जाएंगी और भगवान कबीर के अवतार की महिमा करेंगी।'
यही तेरहवा पंथ वर्तमान में संत रामपालजी महाराज द्वारा चलाया जा रहा है। तेरहवा पंथ वास्तविक यथार्थ कबीर पंथ है जो सन् 1994 से प्रारम्भ हुआ है जो संत रामपालजी महाराज द्वारा संचालित है। यही वह समय है जब तत्वज्ञान को समझ कर घर घर में कबीर साहेब की भक्ति प्रारंभ होगी व् सभी मोक्ष के भागी होंगे।
वास्तविकता में विश्व विजेता संत रामपाल जी महाराज, भगवान कबीर साहेब के अवतार हैं और अज्ञानता को दूर करने और कसाई काल के जाल में फंसी हुई अपनी प्यारी आत्माओं को मुक्त करने के लिए व चारों ओर फैले अधर्म का विनाश करने के लिए अवतरित हुए हैं। आप सभी उनकी शरण ग्रहण करें और अपने मानव जन्म को श्रेष्ठ बनाकर मोक्ष प्राप्त करें, परमात्मा को प्राप्त करें।
#SantRampalJi_IncarnationDay
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#सहीं_समय_अर्थात्_सहीं_अवसर_की_पहचान...
🍁🍁🍁गीता ज्ञान दाता प्रभू अध्याय 2 के श्लोक नंबर 37 में अर्जुन से कहता हैं कि
"हे अर्जुन, यदि तू युद्ध में मारा जायेगा तो स्वर्ग का राज्य भोगेगा और यदि तू युद्ध में जीत जायेगा तो संपूर्ण पृथ्वी पर राज्य करेगा" ***
🍁🍁🍁सारांश तो यह हैं यह गीता ज्ञान दाता प्रभू #ब्रम्ह हैं, #कालपुरूष हैं, इनको पूर्ण परमात्मा ने इनके अक्षम्य अपराध के चलते यह श्राप दिया हैं कि तू प्रतिदिन 1 लाख मनुष्यों को मारकर खावेगा....
इसलिए इनको हर दिन यही चिंता रहती हैं कि किस प्रकार से रो�� 1 लाख मनुष्यों को मारूं ?
इसलिए इसको हरहाल युद्ध कराना था, वैसे भी यह काल पुरूष अर्जुन को बतला दिया था कि ये सभी तो मेरे द्वारा पहले से ही मारा जा चुका हैं, तू तो एक निमित्त मात्र हैं *
🍁🍁🍁विचार करें यदि गीता ज्ञान दाता प्रभू अर्जुन का सच्चा हितैषी होता तो वो यह कहता कि दो दिन की यह जिंदगी हैं, यह दूर्लभ मानव शरीर देवताओं को भी प्राप्त नहीं हो पाता जो तूझे प्राप्त हुआ हैं ।
अतएव शस्त्र को फेंक दे और और शास्त्र उठाले अर्थात् #रामनाम की माला फेर ले, परमेश्वर के भजन में ही इस आत्मा का सच्चा कल्याण निहित हैं *
🍁🍁🍁बस इतनी सी बात हैं जो अर्जुन को उनके घर बैठाकर भी कह सकता हैं, इतना ड्रामा, इतना महाविनाश कर रक्त की नदियां बहाने की क्या जरूरत थी, जबकि प्रत्येक मानव शरीर धारी आत्मा उस सच्चे प्रभू (#सत्_साहेब) का परम् प्रिय संतान हैं क्योंकि उन्होंने मनुष्य को अपने ही स्वरूप के अनुसार बनाया हैं, इसलिए मनुष्य को #पुरूष और उस सच्चिदानन्द घनब्रम्ह अर्थात् पूर्ण परमात्मा को #परमपुरूष कहा जाता हैं **
सुक्ष्मवेद में बताया गया हैं कि
कबीर, की तीन लोक पिंजरा भया, पाप पुण्य दो जाल *
सभी जीव भोजन भये, एक खाने वाला #काल **
गरीब, काल डरै करतार से, जय जय जय जगदीश *
जौरा जौरी झाड़ती, पग रज डारै शीश **
गरीब,एक पापी एक पुण्यी आया,एक हैं सूम दलेल रे *
बिना भजन कोई काम नहीं आवे, सब हैं जम की जेल रे **
#सत्यकबीर की बंदगी, जै कर जाने कोय *
गरीबदास,ता दास का, आवागमन न होय **
🍁🍁🍁जबकि हकीकत तो यह हैं इस समय अब दोनों हॉथों में लड्डू हैं *
#पांचवे_वेद अर्थात् #सुक्ष्मवेद में परमेश्वर कबीर जी ने अपने परम् शिष्य धनी धर्मदास को (भविष्यवाणी करके) पहले से ही कलयुग की इस परम् कल्याणकारी बीचली पीढ़ी के विषय में अवगत करा दिया था ***
इस परम् रहस्य को समझने और शास्त्र विरुद्ध भक्ति साधना (टेढ़ा मेढ़ा भक्ति मार्ग) को त्याग कर अपने अनमोल मानव जीवन को सफल करने के लिए सपरिवार आज ही देखिए
विश्व का एकमात्र तत्वदर्शी सन्त अर्थात् सच्चे सद्गुरू जी का यथार्थ अध्यात्मिक सत्संग का कार्यक्रम
√√√ साधना टीवी चैनल / पापकॉर्न TV चैनल पर
सायं 07:30 pm.
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart20 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart21
सन् 2013 में कलयुग वर्तमान में कितना बीत चुका है?
हिन्दू धर्म में आदि शंकराचार्य जी का विशेष स्थान है। दूसरे शब्दों में कहें तो हिन्दू धर्म के सरंक्षक तथा संजीवन दाता भी आदि शंकराचार्य जी हैं। उनके पश्चात् जो प्रचार उनके शिष्यों ने किया, उसके परिणामस्वरूप हिन्दु देवताओं की पूजा की क्रान्ति-सी आई है। उनके ईष्ट देव श्री शंकर भगवान हैं। उनकी पूज्य देवी पार्वती जी हैं। इसके साथ श्री विष्णु जी तथा अन्य देवताओं के वे पुजारी हैं। विशेषकर "पंच देव पूजा" का विधान है :- 1. श्री ब्रह्मा जी 2. श्री विष्णु जी 3. श्री शंकर जी 4. श्री परासर ऋषि जी 5. श्री कृष्ण द्वैपायन उर्फ श्री वेद व्यास जी पूज्य हैं।
पुस्तक "हिमालय तीर्थ" (लेखक : जे.पी. नम्बूरी उप मुख्य कार्य अधिकारी श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति, प्रकाशक : रनज चक्रवर्ती 76A/1, बामाचरण राय रोड, कलकता, मुद्रक गिरि प्रिन्ट सर्विस कलकता) में शिव रहस्य नामक पुस्तक के श्लोक का हवाला देकर भविष्यवाणी की थी जो आदि शंकराचार्य जी के जन्म से पूर्व की है। कहा है कि आदि शंकराचार्य जी का जन्म कलयुग के तीन हजार वर्ष बीत जाने के पश्चात् होगा। अब गणित की रीति से जाँच करके देखते हैं, वर्तमान में यानि 2013 में
कलयुग कितना बीत चुका है?
जन्म प्रमाण :-
पुस्तक का नाम = ज्योतिर्मय ज्योतिर्मठ
लेखक = शंकराचार्य श्री स्वरूपानंद जी महाराज, संपादक एवं संकलनकर्ता विष्णुदत्त शर्मा, अध्यक्ष आध्यात्मिक उत्थान मंडल (दिल्ली), मुद्रक = फाईन प्रिंट एंड पैक्स, प्रकाशक : अखिल भारतीय आध्यात्मिक उत्थान मंडल 1/3234, गली नं. 2 राम नगर विस्तार, मण्डौली रोड, शाहदरा दिल्ली 110032। इस पुस्तक के पृष्ठ नं. 11 पर लिखा है: आद्य गुरू शंकराचार्य संक्षिप्त जीवन परिचय। गुरू परम्परागत मठों के अनुसार आदि श्री शंकराचार्य जी का जन्म ईश पूर्व 508 वर्ष है, वे 32 वर्ष जीवित रहे। उनका जीवन काल ईशा पूर्व 508/476 वर्ष है। इनका जन्म केरल प्रांत में पूर्णा नदी के तट पर कालड़ी ग्राम में धर्म निष्ट नम्बूदरी शैव ब्राह्मण श्री शिव गुरू व धर्म परायण सुभद्रा के घर हुआ था।
[नोट :- जो 508/476 लिखा है, इसका अर्थ है कि आदि शंकराचार्य जी का जन्म ईशा जी के जन्म से 508 वर्ष पूर्व हुआ तथा उनकी मृत्यु 32 वर्ष की आयु में ईशा जी के जन्म से 476 वर्ष पूर्व हुई।}
गणित की रीति से जानते हैं कि सन् 2013 में कलयुग कित80/456 हुआ है? :- आदि शंकराचार्य जी का जन्म ईशा जी के जन्म से 508 वर्ष पूर्व हुआ। ईशा जी के जन्म को हो गए = 2013 वर्ष।
शंकराचार्य जी को कितने वर्ष हो गए 2013 + 508 2521 वर्ष । ऊपर से हिसाब लगाएँ तो शंकराचार्य जी का जन्म हुआ वर्ष बीत जाने पर। कलयुग 3000
सन् वर्ष 2013 में कलयुग कितना बीत चुका है = 3000 + 2521 = 5521 वर्ष । अब देखते हैं कि 5505 वर्ष कलयुग कौन-से सन् में पूरा होता है = 5521 - 5505 = 16 वर्ष सन् 2013 से पहले।
2013-16 = 1997 ई. को कलयुग 5505 वर्ष पूरा हो जाता है। संवत् के हिसाब से स्वदेशी वर्ष फाल्गुन महीने यानि फरवरी-मार्च में पूरा हो जाता है। शंकराचार्य का अर्थ है शंकर जी तमगुण देवता का ज्ञान बताने वाला अध्यापक। जैसे कहते हैं Hindi Teacher यानि हिन्दी पढ़ाने वाला अध्यापक । इसी प्रकार शंकर आचार्य का अर्थ है शंकर यानि तमगुण शिव का ज्ञान बताने वाला गुरू। शंकराचार्य = शंकर गुरू, आदि शंकराचार्य का अर्थ है पहले वाला शंकर गुरू। शुरू वाला शंकराचार्य ।
यहाँ से देवी-देवताओं की पूजा प्रारंभ हो गई थी तथा मूर्ति पूजा व कर्मकांड में इजाफा हुआ और इस पूजा को करने वाले हिन्दू कहे जाने लगे। आदि शंकराचार्य जी ने भारत देश की चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की। चारों को उपरोक्त चार वाक्यों में से एक-एक दिया। प्रत्येक मठ की देवी तथा देवता भी भिन्न-भिन्न हैं। इनके वाक्य (मंत्र) भी भिन्न-भिन्न हैं, जैसे ऊपर लिखे हैं। वे इनकी पूजा करते तथा करवाते हैं। इसके साथ-साथ पित्तर पूजा, भूत पूजा, पिंड दान करना, तीर्थों पर जाना, चारों धामों की यात्रा करना, मूर्ति पूजा करना, व्रत रखना हिन्दुओं की विशेष पूजा है जो शास्त्रविधि त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण है। इसके करने से साधक को न तो सुख प्राप्त होता है, न सिद्धि प्राप्त होती है। जिससे कार्यों में न सफलता मिलती है तथा न गति होती है यानि उसका मोक्ष नहीं होता । विचारणीय विषय है कि इन तीन वस्तुओं के लिए ही तो भक्ति की जाती है। ये तीनों उपरोक्त शास्त्र विरुद्ध साधना से प्राप्त नहीं हुई, अपितु पित्तर पूजा से पित्तर बन गए। भूत पूजा से भूत बन गए। देवताओं की पूजा से कुछ समय उनके पास उनके लोक में चले गए। फिर पृथ्वी पर पशु-पक्षियों की योनियों में कष्ट उठाया।
आदि शंकराचार्य परमात्मा की खोज में बचपन से ही लग गए थे। इनको पता चला कि एक संत गुफा में तपस्या करता है। कई-कई दिन बाहर नहीं की आयु में ईशा जी के जन्म से 476 वर्ष पूर्व हुई।}
गणित की रीति से जानते हैं कि सन् 2013 में कलयुग कितना व्यतीत हुआ है? :- आदि शंकराचार्य जी का जन्म ईशा जी के जन्म से 508 वर्ष पूर्व हुआ। ईशा जी के जन्म को हो गए = 2013 वर्ष।
शंकराचार्य जी को कितने वर्ष हो गए 2013 + 508 2521 वर्ष ।
ऊपर से हिसाब लगाएँ तो शंकराचार्य जी का जन्म हुआ वर्ष बीत जाने पर। कलयुग 3000
सन् वर्ष 2013 में कलयुग कितना बीत चुका है = 3000 + 2521 = 5521 वर्ष । ���ब देखते हैं कि 5505 वर्ष कलयुग कौन-से सन् में पूरा होता है = 5521 - 5505 = 16 वर्ष सन् 2013 से पहले।
2013-16 = 1997 ई. को कलयुग 5505 वर्ष पूरा हो जाता है। संवत् के हिसाब से स्वदेशी वर्ष फाल्गुन महीने यानि फरवरी-मार्च में पूरा हो जाता है। शंकराचार्य का अर्थ है शंकर जी तमगुण देवता का ज्ञान बताने वाला
अध्यापक। जैसे कहते हैं Hindi Teacher यानि हिन्दी पढ़ाने वाला अध्यापक । इसी प्रकार शंकर आचार्य का अर्थ है शंकर यानि तमगुण शिव का ज्ञान बताने वाला गुरू। शंकराचार्य = शंकर गुरू, आदि शंकराचार्य का अर्थ है पहले वाला शंकर गुरू। शुरू वाला शंकराचार्य । यहाँ से देवी-देवताओं की पूजा प्रारंभ हो गई थी तथा मूर्ति पूजा व कर्मकांड में इजाफा हुआ और इस पूजा को करने वाले हिन्दू कहे जाने लगे। आदि शंकराचार्य जी ने भारत देश की चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की। चारों को उपरोक्त चार वाक्यों में से एक-एक दिया। प्रत्येक मठ की देवी तथा देवता भी भिन्न-भिन्न हैं। इनके वाक्य (मंत्र) भी भिन्न-भिन्न हैं, जैसे ऊपर लिखे हैं। वे इनकी पूजा करते तथा करवाते हैं। इसके साथ-साथ पित्तर पूजा, भूत पूजा, पिंड दान करना, तीर्थों पर जाना, चारों धामों की यात्रा करना, मूर्ति पूजा करना, व्रत रखना हिन्दुओं की विशेष पूजा है जो शास्त्रविधि त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण है। इसके करने से साधक को न तो सुख प्राप्त होता है, न सिद्धि प्राप्त होती है। जिससे कार्यों में न सफलता मिलती है तथा न गति होती है यानि उसका मोक्ष नहीं होता । विचारणीय विषय है कि इन तीन वस्तुओं के लिए ही तो भक्ति की जाती है। ये तीनों उपरोक्त शास्त्र विरुद्ध साधना से प्राप्त नहीं हुई, अपितु पित्तर पूजा से पित्तर बन गए। भूत पूजा से भूत बन गए। देवताओं की पूजा से कुछ समय उनके पास उनके लोक में चले गए। फिर पृथ्वी पर पशु-पक्षियों की योनियों में कष्ट उठाया।
आदि शंकराचार्य परमात्मा की खोज में बचपन से ही लग गए थे। इनको पता चला कि एक संत गुफा में तपस्या करता है। कई-कई दिन बाहर नहीं निकलता, पहुँचा हुआ संत है। आदि शंकराचार्य जी उनसे मिले, गुरू बनाया। उस संत जी ने आदि शंकराचार्य जी को बताया कि जीव ही ब्रह्म है यानि जीव ही कर्ता है। शिष्य तो जिज्ञासु होता है। जो गुरू बताता है, उसी पर विश्वास करता है। आदि शंकराचार्य जी ने भी यही प्रचार करना प्रारंभ कर दिया। परमात्मा की भक्ति करनी चाहिए। मनुष्य जीवन भक्ति करके आत्म कल्याण करवाने के लिए मिलता है। जीव ही कर्ता है। यह प्रचार सनातन धर्म के व्यक्तियों में प्रारंभ किया। लोगों ने प्रश्न किए कि हे महात्मा जी! यदि जीव ही कर्ता (परमात्मा) है तो फिर भक्ति-साधना की क्या आवश्यक्ता है? आदि शंकराचार्य जी भी विचार करने लगे कि बात तो सही है। फिर वे कहने लगे कि शंकर भगवान तथा पार्वती माता की भक्ति करो। राम, कृष्ण का नाम जपो। विष्णु जी, ब्रह्मा जी की भक्ति करो। पाँच देवों की भक्ति करो। पाँच देवता बताए हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं: 1. श्री ब्रह्मा जी, 2. श्री विष्णु जी, 3. श्री शिव जी, 4. श्री परासर ऋषि जी, 5. श्री कृष्ण द्वैपायन यानि व्यास जी। इनकी भक्ति करो। इसे पंचदेव उपासना कहा है।
"आदि शंकराचार्य जी का बताया ज्ञान" : 1. यह जीवात्मा ही ब्रह्म है यानि परमात्मा है। पुस्तक - शांकर पंचकम् 1. लेखक : आदि शंकराचार्य, अनुवादकः- स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज, ज्योतिर्द्वारकेतिशांकरपीठद्वयाधीश्वराः, श्री शारदा पीठ प्रकाशनम् : श्री द्वारका। पृष्ठ नं. 8, श्लोक नं. 24 पर लिखा है कि वह ब्रह्म मैं ही हूँ यानि परमात्मा मैं (जीवात्मा) ही हूँ अर्थात् जीव ही ब्रह्म है।
पृष्ठ 62 पर श्लोक 41 में कहा है कि :- प्रश्न 12 : प्रारब्ध कर्म क्या है?
उत्तर (आदि शंकराचार्य जी का) इस शरीर को उत्पन्न कर इस लोक में इस प्रकार सुख-दुःख आदि भोग को देने वाले जो कर्म हैं, वे प्रारब्ध कर्म माने जाते हैं जो भोग से ही नष्ट होते हैं। प्रारब्ध कर्मों का नाश भोग से ही होता है, चाहे वो कर्म धर्ममय (पुण्य) हो या अधर्ममय यानि पाप कर्म हो, उनका फल भोगना पड़ेगा।
पृष्ठ नं. 62 पर ही श्लोक नं. 42 में कहा है कि "मैं ब्रह्म ही हूँ।" ऐसे निश्चयात्मक ज्ञान के द्वारा संचित (पूर्व जन्मों के शुभ अशुभ किए कर्म) नष्ट हो जाते हैं।
भावार्थ है कि भक्ति की आवश्यक्ता नहीं मानते। पाठको! इसे कहते हैं ऊवा बाई का ज्ञान।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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#कबीरसाहेब_की_मगहर_लीला
🌈मगह�� में कबीर परमेश्वर के सशरीर अमरलोक जाने की अद्भुत लीला🌈
पवित्र वेदों में कहा गया है कि वह पूर्ण परमात्मा सशरीर आता है और सशरीर जाता है और अच्छी आत्माओं को मिलता है उनका जन्म किसी मां के गर्भ से नहीं होता है और वह कुंवारी गायों का दूध पीता है।
वेदों में पूर्ण परमेश्वर का नाम स्पष्ट रूप से कविर्देव कहा गया है। जिनको हम साधारण भाषा में कबीर देव या फिर कबीर साहब कहते हैं। कबीर साहेब का प्राकट्य सन 1398 (संवत 1455), में ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को ब्रह्ममूहर्त के समय कमल के पुष्प पर हुआ था, जिसके प्रत्यक्ष दृष्टा अष्टानंद ऋषि जी थे।
कबीर साहेब (परमेश्वर) जी का जन्म माता पिता से नहीं हुआ बल्कि वह हर युग में अपने निज धाम सतलोक से चलकर पृथ्वी पर अवतरित होते हैं। कबीर साहेब जी लीलामय शरीर में बालक रूप में नीरु और नीमा को काशी के लहरतारा तालाब में एक कमल के पुष्प के ऊपर मिले थे।
"अनंत कोट ब्रह्मांड में, बंदी छोड़ कहाए |
सो तो एक कबीर हैं, जो जननी जन्या न माए ||"
कबीर साहिब ने अपने जीवन काल में अनेक धार्मिक सुधार किए, पाखंडवाद की चरम सीमा को समाप्त किया, साथ ही हिंदू मुस्लिम को भाइचारे का पाठ पढ़ाया। उनके जीवन काल में ऐसे अनेकों प्रमाण मिलते हैं कि जिससे स्पष्ट होता है कि वह एक साधारण व्यक्ति नहीं बल्कि पूर्व परमेश्वर थे उनके ऊपर 52 कसनी भी कसी गई थी। वे सत्यता और निडरता के साथ अडिग रहे।
उस समय पाखंडवाद अपनी चरम सीमा पर था। उसी समय यह धारणा फैलाई गई थी कि मगहर में मरने वाले को नर्क तथा काशी में मरने वाले को स्वर्ग की प्राप्ति होती है, इस धारणा को समाप्त करने के लिए कबीर साहिब ने मगहर में शरीर त्यागने का निर्णय लिया।
मगहर के पास एक आमी नदी बहती थी, जो भगवान शंकर के श्राप से सूख गई थी। ऐसा कहा जाता था कि सभी धर्म गुरुओं ने अपने प्रयत्न कर लिए थे किंतु कोई भी सफल नहीं रहा अंत में सभी ने हार मान ली थी। तब कबीर साहेब जी ने सतलोक प्रस्थान करने से पूर्व मगहर पहुंचकर कहां कि, मैं बहते जल में स्नान करुंगा। तब बिजली खां पठान ने बताया कि, यहां पर एक नदी बहा करती थी जो भगवान शिव जी के श्राप से सूखी पड़ी है। कबीर साहेब ने उस सूखी नदी के पास जाकर अपनी शक्ति से हाथ का ऐसे इशारा किया जैसे यातायात (ट्रैफिक) का सिपाही रुकी हुई गाड़ियों को चलने का संकेत करता है। जैसे ही कबीर साहेब ने हाथ से इशारा किया तो कुछ ही दूरी पर जोर से धमाके की आवाज हुई और वह आमी नदी पानी से ��बालब भरकर बहने लगी। आज भी वह आमी नदी प्रमाण के तौर पर विद्यमान है।
कबीर साहब जी ने मगहर रियासत में 14वीं शताब्दी में पड़े भीषण अकाल को अपनी समर्थ शक्ति से टालकर वर्षा करके सबको जीवनदान दिया था, इन सब लीलाओं को देखकर हजारों हिंदू-मुसलमानों ने उपदेश लिया। वहीं एक 70 वर्षीय निःसंतान मुसलमान दंपती को पुत्र होने का आशीर्वाद दिया था। वर्तमान में उस व्यक्ति का एक पूरा मौहल्ला बना हुआ है, जिसका नाम है "मौहल्ला कबीर करम"
सन 1518 वि. स. 1575 महिना माघ शुक्ल पक्ष तिथि एकादशी को कबीर साहेब मगहर से सशरीर सतलोक गए थे। ऐसा मानना था कि एक भविष्यवाणी के अनुसार मध्यकाल में भयंकर गृह युद्ध होगा जिसमें हजारों–लाखों की संख्या में लोगों की जान जानी थी यह युद्ध हिंदू और मुस्लिम राजाओं के बीच होने वाला था किंतु कबीर साहिब ने इसे भी टाल दिया था ।
कबीर साहिब जी के शरीर त्यागने के समय हिंदू और मुसलमानों ने अपनी अपनी धर्म के रीति रिवाज अनुसार कबीर साहिब जी के शरीर को दाह संस्कार करना चाहते थे। और इसलिए राजा बीर देव सिंह बघेल तथा बिजली खां पठान दोनों अपनी अपनी सेना लेकर वहां पहुंचे थे। जब कबीर साहेब ने दोनों को सेना के साथ देखा तो कहा कि, आप दोनों ये सेना किसलिए लाए हो, क्या मैंने 120 वर्ष तक यही शिक्षा दी थी? इस मिट्टी का तुम क्या करोगे, इसे चाहे गाड दो या फूंक दो इससे क्या मिलेगा। सुन लो आप दो नहीं एक हो, एक ही पिता की संतान हो। यदि झगड़ा किया तो मुझ से बुरा नहीं होगा। तुम एक काम करना मेरे शरीर को आधा आधा बांट लेना पर लडना मत।
इसके बाद कबीर साहेब ने एक चद्दर नीचे बिछाई और एक ऊपर ओढ़ ली। फिर कुछ देर बाद कबीर साहिब ने सतलोक जाते वक्त एक आकाशवाणी की,
"उठा लो पर्दा, इसमें नहीं है मुर्दा"
फिर कहा कि, काशी के पंडितों देख लो अपने पोथी खोलकर कि, मैं कहां जा रहा हूं। में तो स्वर्ग से भी उपर सतलोक में जा रहा हूं। और सुनो सतभक्ति करने वाला चाहे कहीं पर भी प्राण त्याग दे वह अपने सही स्थान पर ही जाएगा।
जब सबने ऊपर की और देखा तो आकाश में तेजोमय प्रकाश का गोला जाता दिखाई दिया। इसके बाद जब चद्दर उठाकर देखा गया तो उनके शरीर के स्थान पर सुगंधित फूल मिले।
जो कबीर परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार दोनों धर्मों के लोगों ने आपस में आधे आधे बांटकर मगहर में वहीं पर 100 -100 फुट के अंतर से एक-एक यादगार बनाई जो ��ज भी विद्यमान है। यह दोनों धर्मों हिंदुओं और मुसलमानों में आपसी भाईचारे व सद्भावना की एक मिसाल का प्रमाण है।
"गरीब, भूमि भरोसे बूड़त हैं, कल्पत हैं दोहूँ दीन।
सब का सतगुरु कुल धनी, मगहर भये ल्यौलीन।।
इस प्रकार कबीर साहिब जी ने अंत समय में भी लोगों में व्याप्त अंधविश्वास को समाप्त किया। साथ ही आपस में भाईचारे को बनाए रखने की सलाह दी। जो आज भी मगहर में हिंदू तथा मुसलमानों में आपसी भाईचारे की अद्भुत झलक क़ायम है।
#कबीरसाहेब_की_मगहर_लीला
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पवित्र पुस्तक "कबीर परमेश्वर"
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➜ साधना TV 📺 पर शाम 7:30 से 8:30
➜ श्रद्धा Tv 📺 दोपहर - 2:00 से 3:00
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पवित्र पुस्तक "कबीर परमेश्वर"
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#KabirIsGod
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🌈मगहर में कबीर परमेश्वर के सशरीर अमरलोक जाने की अद्भुत लीला🌈
पवित्र वेदों में कहा गया है कि वह पूर्ण परमात्मा सशरीर आता है और सशरीर जाता है और अच्छी आत्माओं को मिलता है उनका जन्म किसी मां के गर्भ से नहीं होता है और वह कुंवारी गायों का दूध पीता है।
वेदों में पूर्ण परमेश्वर का नाम स्पष्ट रूप से कविर्देव कहा गया है। जिनको हम साधारण भाषा में कबीर देव या फिर कबीर साहब कहते हैं। कबीर साहेब का प्राकट्य सन 1398 (संवत 1455), में ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को ब्रह्ममूहर्त के समय कमल के पुष्प पर हुआ था, जिसके प्रत्यक्ष दृष्टा अष्टानंद ऋषि जी थे।
कबीर साहेब (परमेश्वर) जी का जन्म माता पिता से नहीं हुआ बल्कि वह हर युग में अपने निज धाम सतलोक से चलकर पृथ्वी पर अवतरित होते हैं। कबीर साहेब जी लीलामय शरीर में बालक रूप में नीरु और नीमा को काशी के लहरतारा तालाब में एक कमल के पुष्प के ऊपर मिले थे।
"अनंत कोट ब्रह्मांड में, बंदी छोड़ कहाए |
सो तो एक कबीर हैं, जो जननी जन्या न माए ||"
कबीर साहिब ने अपने जीवन काल में अनेक धार्मिक सुधार किए, पाखंडवाद की चरम सीमा को समाप्त किया, साथ ही हिंदू मुस्लिम को भाइचारे का पाठ पढ़ाया। उनके जीवन काल में ऐसे अनेकों प्रमाण मिलते हैं कि जिससे स्पष्ट होता है कि वह एक साधारण व्यक्ति नहीं बल्कि पूर्व परमेश्वर थे उनके ऊपर 52 कसनी भी कसी गई थी। वे सत्यता और निडरता के साथ अडिग रहे।
उस समय पाखंडवाद अपनी चरम सीमा पर था। उसी समय यह धारणा फैलाई गई थी कि मगहर में मरने वाले को नर्क तथा काशी में मरने वाले को स्वर्ग की प्राप्ति होती है, इस धारणा को समाप्त करने के लिए कबीर साहिब ने मगहर में शरीर त्यागने का निर्णय लिया।
मगहर के पास एक आमी नदी बहती थी, जो भगवान शंकर के श्राप से सूख गई थी। ऐसा कहा जाता था कि सभी धर्म गुरुओं ने अपने प्रयत्न कर लिए थे किंतु कोई भी सफल नहीं रहा अंत में सभी ने हार मान ली थी। तब कबीर साहेब जी ने सतलोक प्रस्थान करने से पूर्व मगहर पहुंचकर कहां कि, मैं बहते जल में स्नान करुंगा। तब बिजली खां पठान ने बताया कि, यहां पर एक नदी बहा करती थी जो भगवान शिव जी के श्राप से सूखी पड़ी है। कबीर साहेब ने उस सूखी नदी के पास जाकर अपनी शक्ति से हाथ का ऐसे इशारा किया जैसे यातायात (ट्रैफिक) का सिपाही रुकी हुई गाड़ियों को चलने का संकेत करता है। जैसे ही कबीर साहेब ने हाथ से इशारा किया तो कुछ ही दूरी पर जोर से धमाके की आवाज हुई और वह आमी नदी पानी से लबालब भरकर बहने लगी। आज भी वह आमी नदी प्रमाण के तौर पर विद्यमान है।
कबीर साहब जी ने मगहर रियासत में 14वीं शताब्दी में पड़े भीषण अकाल को अपनी समर्थ शक्ति से टालकर वर्षा करके सबको जीवनदान दिया था, इन सब लीलाओं को देखकर हजारों हिंदू-मुसलमानों ने उपदेश लिया। वहीं एक 70 वर्षीय निःसंतान मुसलमान दंपती को पुत्र होने का आशीर्वाद दिया था। वर्तमान में उस व्यक्ति का एक पूरा मौहल्ला बना हुआ है, जिसका नाम है "मौहल्ला कबीर करम"
सन 1518 वि. स. 1575 महिना माघ शुक्ल पक्ष तिथि एकादशी को कबीर साहेब मगहर से सशरीर सतलोक गए थे। ऐसा मानना था कि एक भविष्यवाणी के अनुसार मध्यकाल में भयंकर गृह युद्ध होगा जिसमें हजारों–लाखों की संख्या में लोगों की जान जानी थी यह युद्ध हिंदू और मुस्लिम राजाओं के बीच होने वाला था किंतु कबीर साहिब ने इसे भी टाल दिया था ।
कबीर साहिब जी के शरीर त्यागने के समय हिंदू और मुसलमानों ने अपनी अपनी धर्म के रीति रिवाज अनुसार कबीर साहिब जी के शरीर को दाह संस्कार करना चाहते थे। और इसलिए राजा बीर देव सिंह बघेल तथा बिजली खां पठान दोनों अपनी अपनी सेना लेकर वहां पहुंचे थे। जब कबीर साहेब ने दोनों को सेना के साथ देखा तो कहा कि, आप दोनों ये सेना किसलिए लाए हो, क्या मैंने 120 वर्ष तक यही शिक्षा दी थी? इस मिट्टी का तुम क्या करोगे, इसे चाहे गाड दो या फूंक दो इससे क्या मिलेगा। सुन लो आप दो नहीं एक हो, एक ही पिता की संतान हो। यदि झगड़ा किया तो मुझ से बुरा नहीं होगा। तुम एक काम करना मेरे शरीर को आधा आधा बांट लेना पर लडना मत।
इसके बाद कबीर साहेब ने एक चद्दर नीचे बिछाई और एक ऊपर ओढ़ ली। फिर कुछ देर बाद कबीर साहिब ने सतलोक जाते वक्त एक आकाशवाणी की,
"उठा लो पर्दा, इसमें नहीं है मुर्दा"
फिर कहा कि, काशी के पंडितों देख लो अपने पोथी खोलकर कि, मैं कहां जा रहा हूं। में तो स्वर्ग से भी उपर सतलोक में जा रहा हूं। और सुनो सतभक्ति करने वाला चाहे कहीं पर भी प्राण त्याग दे वह अपने सही स्थान पर ही जाएगा।
जब सबने ऊपर की और देखा तो आकाश में तेजोमय प्रकाश का गोला जाता दिखाई दिया। इसके बाद जब चद्दर उठाकर देखा गया तो उनके शरीर के स्थान पर सुगंधित फूल मिले।
जो कबीर परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार दोनों धर्मों के लोगों ने आपस में आधे आधे बांटकर मगहर में वहीं पर 100 -100 फुट के अंतर से एक-एक यादगार बनाई जो आज भी विद्यमान है। यह दोनों धर्मों हिंदुओं और मुसलमानों में आपसी भाईचारे व सद्भावना की एक मिसाल का प्रमाण है।
"गरीब, भूमि भरोसे बूड़त हैं, कल्पत हैं दोहूँ दीन।
सब का सतगुरु कुल धनी, मगहर भये ल्यौलीन।।
इस प्रकार कबीर साहिब जी ने अंत समय में भी लोगों में व्याप्त अंधविश्वास को समाप्त किया। साथ ही आपस में भाईचारे को बनाए रखने की सलाह दी। जो आज भी मगहर में हिंदू तथा मुसलमानों में आपसी भाईचारे की अद्भुत झलक क़ायम है।
#कबीरसाहेब_की_मगहर_लीला
#SantRampalJiMaharaj
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पवित्र पुस्तक "कबीर परमेश्वर"
https://bit.ly/KabirParmeshwarBook
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*🌷बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय🌷*
16/02/2024
*📣X + Koo सेवा📣*
🌼 *सतगुरु जी के बोध दिवस और निर्वाण दिवस के उपलक्ष्य में अब ट्विटर और कू पर भंडारे में आमंत्रित करते हुए ट्रेंडिंग सेवा करेंगे जी।*
*🎯अपने tag के साथ सेवा करेंगे।🎯*
*#विश्व_का_सबसे_बड़ा_भंडारा*
*1Day Left For Bodh Diwas*
*📷''' सेवा से सम्बंधित photo लिंक⤵️*
*Hindi*
https://www.satsaheb.org/hindi-bhandara-invitation-2024/
*English*
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*Odia*
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*Assamese*
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*Kannad*
https://www.satsaheb.org/kannad-bhandara-invitation-2024/
*🎯Sewa Points🎯* ⤵️
🎈 विश्व के सभी महान भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियों के अनुसार भारत का एक महापुरुष विश्व को मानवता के सूत्र में बांध देगा व हिंसा, दुराचार, कपट संसार से सदा के लिए मिटा देगा वह महापुरुष कोई और नहीं बल्कि जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज हैं जिनका 17 फरवरी को बोध दिवस है। इस उपलक्ष्य में 10 सतलोक आश्रमों में चार दिवसीय निःशुल्क विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है।
इस भंडारे में देसी घी से निर्मित भोजन, गरीबदास जी महाराज की अमर वाणी का चार दिवसीय खुला पाठ, दहेज मुक्त शादियाँ व रक्तदान शिविर का आयोजन भी किया जा रहा है। जिसमें आप सभी सादर आमंत्रित हैं।
🎈समस्त जीव आत्माओं के कल्याण हेतु धरती पर अवतरित महान परम संत रामपाल जी महाराज का 17 फरवरी को बोध दिवस है जो काल के बंधन से छुड़वाकर जीव को मोक्ष प्रदान कराते हैं। बोध दिवस के उपलक्ष्य में देशभर में उनके 10 आश्रमों में चार दिवसीय विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें पूरे विश्व को आमंत्रित किया गया है। साथ ही भंडारे में निःशुल्क नामदीक्षा, रक्तदान शिविर, सामूहिक दहेज मुक्त विवाह का भी आयोजन किया गया है।
🎈नास्त्रेदमस ने भविष्यवाणी की है कि ठहरो स्वर्ण युग आ रहा है। एक महापुरुष आध्यात्मिक ज्ञान से पूरे विश्व मे शांति लायेगा। जिसके नेतृत्व में भारत विश्व गुरु बनेगा। वह महापुरुष संत रामपाल जी महाराज जी हैं जिनके बोध दिवस के उपलक्ष्य में और कबीर परमेश्वर जी के निर्वाण दिवस के उपलक्ष्य में 17 -20 फरवरी को 10 सतलोक आश्रमों में चार दिवसीय निःशुल्क विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है। इस भंडारे में शुद्ध देशी घी से निर्मित भोजन, गरीबदास जी महाराज की अमर वाणी का खुला पाठ, दहेज मुक्त शादियाँ व रक्तदान शिविर का आयोजन भी किया जा रहा है। जिसमें आप सभी सादर आमंत्रित हैं।
🎈17 फरवरी को उस महान संत रामपाल जी महाराज जी का बोध दिवस है, जिन्होंने मानव कल्याण के लिए अपना सर्वस्व त्याग दिया। और देखते ही देखते पूरे विश्व में अपने तत्त्वज्ञान का परचम लहरा दिया।
17 -20 फरवरी को संत रामपाल जी महाराज जी के बोध दिवस के उपलक्ष्य में व कबीर परमेश्वर जी के निर्वाण दिवस के उपलक्ष्य में 10 सतलोक आश्रमों में विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें संपूर्ण विश्व को आमंत्रित किया गया है।
🎈नास्त्रेदमस के अनुसार ग्रेट शायरन यानी वह महान पुरुष जो कलयुग में सतयुग लाएगा वह संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं जिनका 17 फरवरी को बोध दिवस मनाया जा रहा है। बोध दिवस के उपलक्ष्य में व कबीर परमेश्वर जी के निर्वाण दिवस के उपलक्ष्य में 17-20 फरवरी को 10 सतलोक आश्रमों में विशाल शुद्ध देसी घी द्वारा निर्मित विशाल भंडारा चल रहा है। साथ ही निःशुल्क नाम दीक्षा भी दी जा रही है। इस अवसर पर पूरा विश्व आमंत्रित है।
🎈 समाज सुधारक संत रामपाल जी महाराज जी के बोध दिवस के उपलक्ष्य में व कबीर परमेश्वर जी के निर्वाण दिवस के उपलक्ष्य में 17-20 फरवरी को 10 सतलोक आश्रमों में संत गरीबदास जी महाराज की अमरवाणी का खुला पाठ, शुद्ध देशी घी से निर्मित विशाल भंडारा, रक्तदान शिविर, नशामुक्त कार्यक्रम, दहेजमुक्त विवाह जैसे अद्भुत समाज सेवी कार्यक्रम चल रहे हैं। इस महासमागम के अवसर पर आप सभी सादर आमंत्रित हैं।
🎈मनुष्य जीवन में महत्वपूर्ण दिन वह है जब सतगुरु मिल जाते हैं। उससे पहले का जीवन निरर्थक होता है। 17 फरवरी 1988 के दिन संत रामपाल जी महाराज जी ने नाम दीक्षा ली और कुछ वर्ष बाद अपने पूज्य गुरुदेव से नाम दीक्षा देने का आदेश पाकर करोड़ों लोगों का मार्गदर्शन किया। इसी दिन को बोध दिवस के रूप में मनाया जाता है। संत रामपाल जी महाराज जी के बोध दिवस के उपलक्ष्य में व कबीर परमेश्वर जी के निर्वाण दिवस के उपलक्ष्य में 17-20 फरवरी को 10 सतलोक आश्रमों में विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है जिसमें पूरा विश्व आमंत्रित है।
🎈17 फरवरी को संत रामपाल जी महाराज का बोध दिवस है। इसी दिन से विश्व कल्याण के लिए अवतरित इस पूर्ण संत ने दिन रात एक कर दिया और कुछ ही वर्षों में वह कर दिखाया जो दुनिया भर के भविष्यवक्ता कहते आये हैं। संत रामपाल जी महाराज जी के बोध दिवस के उपलक्ष्य में व कबीर परमेश्वर जी के निर्वाण दिवस के उपलक्ष्य में 17-20 फरवरी को 10 सतलोक आश्रमों में विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है जिसमें पूरा विश्व आमंत्रित है।
🎈 नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी के अनुसार ग्रेट शायरन हैं संत रामपाल जी महाराज। उन्हीं संत के बोध दिवस पर 17-20 फरवरी को 10 सतलोक आश्रमों में विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है जिसमें पूरा विश्व आमंत्रित है।
🎈कलयुग में सतयुग लाने वाले महापुरुष संत रामपाल जी महाराज जी के बोध दिवस पर 17-20 फरवरी को 10 सतलोक आश्रमों में विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है जिसमें पूरा विश्व आमंत्रित है।
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